ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- IX , ISSUE- VII October  - 2024
Anthology The Research
डा0 भीमराव अम्बेडकर की संविधान निर्माण में भूमिका
Role of Dr. Bhimrao Ambedkar in the Making of the Constitution
Paper Id :  19312   Submission Date :  2024-10-14   Acceptance Date :  2024-10-20   Publication Date :  2024-10-21
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DOI:10.5281/zenodo.13989903
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शैलजा अस्थाना
असिस्टेंट प्रोफेसर
राजनीति विज्ञान विभाग
वीर बहादुर सिंह राजकीय महाविद्यालय
कैम्पियरगंज, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर एक अद्वितीय राजनीतिक नेता के साथ-साथ एक महान दार्शनिक, लेखक, अर्थशास्त्री, न्यायविद्, बहुभाषाविद्, धर्मशास्त्र के गहन ज्ञाता और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भारत में अस्पृश्यता और सामाजिक असमानता के उन्मूलन के लिए समर्पित किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू की जीवनी के लेखक माइकल ब्रेचर ने डॉ. आंबेडकर को भारतीय संविधान के प्रमुख शिल्पकार के रूप में सम्मानित किया और संविधान निर्माण में उनकी भूमिका को एक नेतृत्वकर्ता के रूप में चिह्नित किया (नेहरू: ए पॉलिटिकल बायोग्राफी, 1959)। ग्रैनविले ऑस्टिन ने डॉ. अम्बेडकर द्वारा रचित संविधान को स्वतंत्र भारत का सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक दस्तावेज बताया।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar was not only a renowned political leader but also an outstanding philosopher, writer, economist, jurist, polyglot, scholar of religious philosophy and a social reformer who dedicated his life to the eradication of untouchability and social inequality in India. Michael Brecher, author of the biography of Pandit Jawaharlal Nehru, considered Dr. Bhimrao Ambedkar as the architect of the Indian Constitution and underlined his role as a field general in the making of the Constitution (Nehru: A Political Biography by Michael Brecher, 1959). Granville Austin called the Constitution prepared by Ambedkar as 'the first and most important social document of independent India'.
मुख्य शब्द डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर, मेजारिटेरियनिज़्म सिंड्रोम, कांग्रेस।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar, Majoritarianism Syndrome, Congress.
प्रस्तावना

डॉ. भीमराव अम्बेडकर का संविधान निर्माण में असाधारण योगदान रहा। 29 अगस्त 1947 को उन्हें स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के लिए गठित संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभाते हुएआंबेडकर ने अपने सहयोगियों और समकालीनों से बहुत प्रशंसा प्राप्त की। संविधान निर्माण में उनके शुरुआती बौद्ध संघ की विधियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों के अध्ययन ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विभिन्न देशों जैसे ब्रिटेनआयरलैंडअमेरिकाकनाडा और फ्रांस के संवैधानिक मॉडल को आधार बनाते हुए भारतीय संदर्भ में एक अद्वितीय संविधान का निर्माण कियाजिसकी आत्मा पूरी तरह भारतीय है। अम्बेडकर ने खराब स्वास्थ्य के बावजूद वर्ष, 11 माह और 18 दिनों में संविधान का मसौदा तैयार कर अपनी अद्वितीय प्रतिभा का परिचय दिया। उनके गहन विधिक और संवैधानिक ज्ञान के कारणकांग्रेस और गांधी के आलोचक होने के बावजूद उन्हें कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में आमंत्रित कियाजिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। आंबेडकर एक मजबूत केंद्रीय सरकार के पक्षधर थेक्योंकि उन्हें विश्वास था कि प्रांतीय और स्थानीय स्तर पर जातिवादी प्रभाव अधिक हो सकता हैजो निचली जातियों के हितों को खतरे में डाल सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर सरकार इन दबावों से कम प्रभावित होती है और इस तरह निचली जातियों के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। इसके अतिरिक्त, अम्बेडकर को यह चिंता थी कि अल्पसंख्यकजो समाज का सबसे कमजोर वर्ग होते हैंराजनीतिक रूप से हाशिए पर आ सकते हैं। इसलिए उनका मानना था कि केवल "एक व्यक्तिएक वोट" का सिद्धांत पर्याप्त नहीं हैबल्कि अल्पसंख्यकों को सत्ता में हिस्सेदारी की गारंटी दी जानी चाहिए। उन्होंने 'मेजारिटेरियनिज़्म सिंड्रोम' (बहुसंख्यकवाद) का विरोध किया और संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए कई सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किए।

अध्ययन का उद्देश्य

प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य डाभीमराव अम्बेडकर की संविधान निर्माण में भूमिका का अध्ययन करना है

साहित्यावलोकन

डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अनुच्छेद 32 को भारतीय संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद माना और कहा कि इसके बिना संविधान बेमानी हैक्योंकि यह संविधान की आत्मा और हृदय है। संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान को अपनायाऔर इस ऐतिहासिक अवसर पर बोलते हुएआंबेडकर ने कहा: "मुझे विश्वास है कि हमारा संविधान कार्यान्वयन के योग्य हैयह लचीला है और साथ ही इतना मजबूत भी कि यह देश को शांति और युद्धदोनों समय में एकजुट रख सके। वास्तव मेंअगर भविष्य में कोई गलती होती हैतो इसका कारण संविधान की खामी नहींबल्कि उसे लागू करने वाले व्यक्ति की गलतियाँ होंगी।" अम्बेडकरएक प्रखर संवैधानिक विशेषज्ञ थेजिन्होंने लगभग 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया था। उन्हें "भारतीय संविधान के निर्माता" के रूप में व्यापक मान्यता मिली। संविधान सभा मेंमसौदा समिति के सदस्य टी॰ टी॰ कृष्णामाचारी ने अम्बेडकर के योगदान को लेकर कहा: "अध्यक्ष महोदयमैं उन लोगों में से हूं जिन्होंने डॉ. अम्बेडकर को ध्यानपूर्वक सुना है। मैं उनके द्वारा संविधान के मसौदे को तैयार करने में की गई कड़ी मेहनत और समर्पण से अवगत हूं। इस महत्वपूर्ण कार्य को जितना ध्यान दिया जाना चाहिए थाउतना शायद मसौदा समिति के अन्य सदस्यों द्वारा नहीं दिया गया। सात सदस्यों में से एक ने इस्तीफा दे दिया थाएक की मृत्यु हो गईएक अमेरिका में थाऔर एक अन्य व्यक्ति राज्य के मामलों में व्यस्त था। अन्य सदस्य स्वास्थ्य कारणों से भाग नहीं ले सके। अंततः यह पूरी जिम्मेदारी डॉ. अम्बेडकर पर आ गईऔर इसमें कोई संदेह नहीं कि हम उनके प्रति गहन आभार व्यक्त करते हैं।" इस प्रकारअम्बेडकर ने न केवल संविधान का मसौदा तैयार करने में केंद्रीय भूमिका निभाईबल्कि अपने गहरे ज्ञान और नेतृत्व से इसे एक मजबूत और लचीला दस्तावेज़ बनायाजो भारत को शांति और चुनौतीपूर्ण समय में मार्गदर्शन कर सके।

मुख्य पाठ

डॉ. भीमराव अम्बेडकर के कुछ प्रमुख विचार और सुझाव निम्नलिखित हैं:

    1. कश्मीर को विशेष दर्जा देने का विरोध: अम्बेडकर ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने और अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार करने से इन्कार किया था। उन्होंने शेख अब्दुल्ला से स्पष्ट रूप से कहा था की यह भारत के हितों के विरुद्ध होगा। उन्होंने कहा की कश्मीर को भारत की सुरक्षा और संसाधनों का लाभ लेना चाहिए, लेकिन भारत के नागरिकों को कश्मीर में अधिकार नहीं मिलेंगे, तो यह एक अस्वीकार्य प्रस्ताव होगा। जब यह विषय सदन में आया, तो अम्बेडकर ने इसका समर्थन नहीं किया।  
    2. समान नागरिक संहिता और मुस्लिम पर्सनल लॉ का विरोध: अम्बेडकर समान नागरिक संहिता के समर्थक थे और उनका मानना था कि व्यक्तिगत कानून भारत जैसे आधुनिक और तार्किक सोच वाले देश में जगह नहीं रखते। संविधान सभा की बहस में उन्होंने समान नागरिक संहिता को अपनाने की वकालत की। उन्होंने हिंदू कोड बिल के माध्यम से महिलाओं को अधिकार देने की कोशिश कीलेकिन जब यह संसद में अस्वीकार हुआतो उन्होंने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी दृष्टि में महिलाओं की प्रगति समाज की प्रगति का मापदंड थी।
    3. आर्थिक नियोजन: एक अर्थशास्त्री के रूप में अम्बेडकर ने भारत की आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए बड़े उद्योगों के विकास की वकालत कीसाथ ही कृषि को भी समाज की रीढ़ माना। उनका मानना था कि औद्योगिकीकरण और कृषि दोनों का संतुलित विकास ही देश की आर्थिक प्रगति का आधार हो सकता है। अम्बेडकर ने भारतीय मुद्रामहंगाईभूमि सुधार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण शोध किए और व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत किए।
    4. भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना: अम्बेडकर ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना के लिए हिल्टन कमीशन को अपने विचार प्रस्तुत किएजो बाद में उनकी गहन आर्थिक दृष्टि के आधार पर स्थापित हुआ। उनकी पुस्तक "द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी" में उन्होंने भारतीय मुद्रा और वित्तीय प्रणाली पर विस्तार से चर्चा की थी।
    5. उदार लोकतंत्र में विश्वास: अम्बेडकर उदार लोकतंत्र के पक्षधर थे और वामपंथी विचारधाराओं के विरोधी थेजो संविधान को समाजवादी दृष्टिकोण से पुनर्परिभाषित करना चाहती थीं। उनका मानना था कि लोगों को यह निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए कि कौन सी सामाजिक संरचना सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंने संविधान सभा में राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना की और आर्थिक लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ने की इच्छा जताई।
    6. शक्तिशाली केंद्र सरकार का समर्थन: अम्बेडकर का मानना था कि एक मजबूत केंद्र सरकार की आवश्यकता हैताकि जातिवाद और प्रांतीय राजनीति के प्रभाव को कम किया जा सके। उन्होंने तर्क दिया कि शक्तियों का विभाजन राज्य को कमजोर नहीं करताबल्कि राष्ट्रीय सरकार के माध्यम से कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होती है। उन्होंने राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने के विचार का विरोध किया और सामाजिक सुधारों के लिए शक्तिशाली केंद्र का समर्थन किया।
    निष्कर्ष

    निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर न केवल भारतीय संविधान के निर्माता थेबल्कि लोकतंत्र के प्रति उनकी गहरी आस्था और व्यापक दृष्टिकोण ने उन्हें आधुनिक भारत के समाज सुधारकों में अग्रणी स्थान दिलाया। वे तानाशाही के विरुद्ध थेक्योंकि उनके अनुसारतानाशाही से त्वरित परिणाम भले ही मिल सकते हैंलेकिन यह सरकार का वैध रूप नहीं हो सकता अम्बेडकर ने हमेशा लोकतंत्र को श्रेष्ठ बतायाक्योंकि यह स्वतंत्रता और समानता दोनों को बढ़ावा देता है। डॉ. अम्बेडकर के अनुसारलोकतंत्र केवल राजनीतिक व्यवस्था तक सीमित नहीं होना चाहिएबल्कि इसका प्रभाव व्यक्तिगतसामाजिक और आर्थिक जीवन पर भी होना चाहिए। उनके विचार मेंवास्तविक लोकतंत्र की स्थापना तभी संभव है जब समाज में जातिगत असमानताओं को समाप्त किया जाए। इसलिए उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक लोकतंत्र की नींव बंधुत्व और समानता की भावना पर रखी। अम्बेडकर का दृष्टिकोण था कि केवल 'एक व्यक्तिएक वोटका सिद्धांत पर्याप्त नहीं हैजब तक सामाजिक स्तर पर समानता सुनिश्चित न हो। उन्होंने संसदीय लोकतंत्र का समर्थन किया, परंतु यह भी बताया कि यह व्यवस्था सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को संबोधित करने में विफल रही है। स्वतंत्रता और समानता दोनों का लोकतंत्र में समावेश अनिवार्य है। अम्बेडकर ने दलितों के अधिकारों के लिए 'मूकनायक', 'बहिष्कृत भारतऔर 'इक्वलिटी जनताजैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन कियाजिससे वह दलित आंदोलन का नेतृत्व कर सके। 1942 से 1946 तक वाइसराय काउंसिल में श्रमिक मामलों के सदस्य के रूप मेंउन्होंने श्रम सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कार्य के घंटे घटाकर 12 से करनेन्यूनतम वेतनसमान काम के लिए समान वेतनछुट्टियों और श्रमिक अधिकारों के लिए कई सुधार किए। इसके अलावाउन्होंने भारत की सिंचाई और विद्युत परियोजनाओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और प्राकृतिक संसाधनों के राष्ट्रीयकरण के विरोध में संविधान संशोधन के विरोध में अपनी राजनीतिक शक्ति का भी परिचय दिया। इतिहासकार आर.सी. गुहा के अनुसारअम्बेडकर एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैंजिन्होंने हर विपरीत परिस्थिति के बावजूद सफलता पाई। आजभारत जिन सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा हैउन पर विजय पाने के लिए हमें अम्बेडकर के विचारों से प्रेरणा लेने और उनके आदर्शों पर चलने की आवश्यकता है।

    सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
    1. भीमराव आंबेडकर : एक जीवनी’, क्रिस्तोफ जाफ्रलो, अनुवाद   योगेन्द्र दत्त, प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली, पृष्ठ 107-108.
    2. संविधान सभा की बहस, खंड- 7, पृष्ठ- 231
    3. Dainik Bhaskar  http://www.bhaskar.com>news>latest-news-06550
    4. Ministry of External Affairs  http://www.mea.gov.in>CPV>VolumeH7
    5. दास, प्रफुल्ल चंद्र. डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर: भारत के एक दूरदृष्टा । मानक प्रकाशन, 2019। पृष्ठ 10
    6. जाधव, प्रवीण. अम्बेडकरवाद: चुनिंदा आर्थिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर निबंध । रावत प्रकाशन, 2013 पृष्ठ 21
    7. क्षीरसागर, रामचन्द्र के. डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के राजनीतिक विचार । इंटेलेक्चुअल बुक कॉर्नर पब्लिशिंग हाउस, 1997। पृष्ठ 54
    8. मजूमदार, एके और भंवर सिंह, संपा. अम्बेडकर और सामाजिक न्याय . राधा प्रकाशन, 1997। पृष्ठ  67-68