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जलवायु परिवर्तन का मानव जीवन पर प्रभाव व उपाय |
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Effects Of Climate Change On Human Life And Its Solutions | |||||||
Paper Id :
19325 Submission Date :
2024-11-01 Acceptance Date :
2024-11-16 Publication Date :
2024-11-17
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14672647 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
भारत को दी गई डेडलाइन पर दुनिया की नजर में लिखा गया यह वाक्य जंगल की आग, झुलसती गर्मी और बाढ़ से डूबते शहर दुनिया में यह क्या हो रहा है। जब तेल, गैस, कोयला आदि ईंधन जलाए जाते हैं इनसे जहरीला धुआं निकलता है जिससे कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होती है और ग्लोबल वार्मिंग में तेजी से वृद्धि हो जाती है। जिससे सूर्य ताप की गर्मी धरती से बाहर नहीं निकलती और तापमान में वृद्धि होती जा रही है ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस शताब्दी के अंत तक भारत में औसत तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Climate is the average weather of a place over a long period of time or over a few years. And climate change is a change in those average conditions. Human activities are the main culprit for the rapid climate change. Humans use oil, gas and coal for domestic purposes, factories and operations. Due to which the climate has been adversely affected. | ||||||
मुख्य शब्द | जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, उपग्रह, समुद्र जलस्तर नकारात्मक प्रभाव, उपाय, अमलीकरण। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Climate Change, Global Warming, Satellites, Sea Level Negative Impacts, Measures, Implementation. | ||||||
प्रस्तावना | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने उपग्रह से प्राप्त सूचना के आधार पर यह
बताया कि भारतीय समुद्र 2.5 मिलीमीटर वार्षिक दर से ऊपर उठ रहा है और अगर
इसी तरह वृद्धि होती रही तो सन 2050 तक समुद्री जलस्तर 15 से 36 सेंटीमीटर ऊपर उठ
जाएगा और समुद्र तट पर बसे शहर व द्वीप समुद्र में जल मग्न हो जाएंगे।
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अध्ययन का उद्देश्य |
प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के मानव जीवन पर प्रभाव का अध्ययन करना है। |
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साहित्यावलोकन |
प्रस्तुत शोधपत्र के लिया विभिन्न ऑनलाइन स्रोतों और पुस्तकों जैसे डॉक्टर दिनेश मणी (2015) की 'जलवायु परिवर्तन के प्रभाव', महेश कुमार वर्णवाल (2020) की 'पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी' और एल एन ठकुराल एवं कुमार संजय (2017) की 'जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव', 'जल संसाधन अनुकूल रणनीतियां' आदि का अध्ययन किया गया है। |
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मुख्य पाठ |
जलवायु परिवर्तन के साक्ष्य
जलवायु में तीव्र गति से हो रहे परिवर्तन के कारण
मौसम परिवर्तन एवं ग्रीनहाउस प्रभाव स्वीडन के वैज्ञानिक स्वांटे अरहेनियस ने वर्ष 1896 में वर्णन किया कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के दो गुना वृद्धि से पृथ्वी के तापमान में 5 से 6 डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि हो जाएगी। जो ग्रीन हाउस गैसें से सूरज की गर्मी को अवशोषित कर लेती है। परंतु पृथ्वी की गर्मी के कुछ भाग को बाहर जाने से रुकती है। तापमान में वृद्धि के साथ वैज्ञानिकों द्वारा ग्रीन हाउस गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, हाइड्रोफ्लोरो कार्बन, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, एरोसॉल, जलवाष्प, ओजोन आदि में वृद्धि देखी गई है। जो वातावरण में शीशे का कार्य करती है। जिससे सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुंचकर कोई बाधा उत्पन्न नहीं करती, परंतु जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन, रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर आदि गैसों के कारण ग्रीनहाउस गैसों पर प्रभाव पड़ा है और जलवायु परिवर्तन हुआ है। जलवायु परिवर्तन का मानव जीवन पर विश्वव्यापी प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में वृद्धि के साथ मौसम में अप्रत्याशित घटनाएं जैसे लूं, बाढ़, सूखा, आंधी, तूफान, चक्रवात आदि की संभावनाएं उत्पन्न हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1960 के दशक के पश्चात 39 नए रोग उभर कर सामने आए हैं जिनका संबंध जलवायु परिवर्तन से है अनुमान है कि 150000 लोगों की मौत इसी कारण हुई है।अत्यधिक गर्मी विगत वर्षों में- यूरोप में 150 वर्षों की सर्वाधिक गर्मी की चपेट के कारण लगभग 25000 लोगों की मौत तथा इंडोनेशिया व बोर्नियो के कई जंगल जलकर नष्ट हो गए। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बड़े-बड़े ग्लेशियर पिघल कर पानी में तब्दील हो गए जिससे कहीं क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ गए और पानी में प्रदूषण तथा कहीं संक्रांमक रोग जैसे अतिसार,हैजा, श्वसन रोग आदि समस्याएं उत्पन्न हुई है। सुखा- गर्मी अधिक बढ़ जाने के कारण फसलों की उर्वरता में कमी तथा फसलों में कुपोषण की समस्या उत्पन्न हो गई है। अम्लीय वर्षा कई प्रकार के रसायन पर्यावरण में घुल जाने के कारण अम्लीय वर्षा होने लगी है जिसे चर्म रोग, आंखों में जलन, खुजली, आंखों का पीलापन आदि कहीं समस्याएं उत्पन्न हो रही है। मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर्यावरणीय परिवर्तन- 1. वायु प्रदूषण- A-सूखी खांसी, B-दमा 2 अल्ट्रावायलेट विकिरण- A-सनबर्न B-दुर्दम मेलानोमा C-प्रतिरक्षा संदमन 3 जलवायु परिवर्तन 1 ताप की सीमा-हीट स्ट्रोक (लू लगना) 2 मौसमी आपदाएं- A-बाढ़, B- सुखा (निर्जलीकरण), C-जठरांत्र रोग, D-मनोसामाजिक आघात 4 पारिस्थितिकी परिवर्तन 1 ख़ाद्य उपलब्धता A-कुपोषण B-वृद्धि रोग C-विकासात्मक विलंब 2 प्रत्यूजा/ माइकोटाक्सिंस A-प्रत्यूजा B-कैंसर C-जन्म दोष 3 संक्रामक रोगों की प्रभावशीलता A-मलेरिया B-डेंगू C-मस्तिष्क शोध D- लाइम रोग 4 पुनः उभरने वाले संक्रामक रोग A-वेस्ट नील रोग B-हंटा विषाणु C-अन्य रोग पानी की मात्रा व गुणवत्ता में परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन के कृषि पर प्रभाव बढ़ती आबादी कृषि की अधिकता तथा वाष्पीकरण में वृद्धि के कारण कृषि में सिंचाई की अधिक आवश्यकता होगी। भारत जैसे कृषि प्रधान देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। कृषि वैज्ञानिकों का अनुमान है कि प्रत्येक 10 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर गेहूं का उत्पादन 4.5 टन कम हो जाएगा तथा अन्य फसले भी प्रभावित होगी और खाद्य फसलों की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन का वनों पर प्रभाव आईपीसीसी की तीसरी आकलन रिपोर्ट से संकेत मिलते हैं कि वन पारिस्थितिकी तंत्र को भावी जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। ग्लोबल वार्मिंग के कारण वनस्पति जगत की संरचना, उत्पादकता और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और पारिस्थितिकी असंतुलन उत्पन्न हो जाएगा। जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु उपाय
जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु वैश्विक प्रयास
जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु भारत के प्रयास
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निष्कर्ष |
जलवायु परिवर्तन हेतु विभिन्न देश अपने यहां उत्सर्जन को कम करने के लिए तत्पर एवं त्वरित कार्यवाही करते हैं जो जलवायु परिवर्तन में कुछ डिग्री का ही अंतर आ सकता है। तथा जलवायु परिवर्तन से होने वाली घटनाओं और समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। विकसित देश जलवायु परिवर्तन हेतु अधिक उत्तरदाई है। उन्हें जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण हेतु यथा शीघ्र नीतियों को अमल में लाया जाना चाहिए। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए संकट खड़ा हो जाएगा। परंतु धीरे-धीरे नियंत्रण किया जा रहा है व जलवायु परिवर्तन में हो रही घटनाओं और समस्याओं के प्रति जागरूकता लाई जा रही है। जनसंख्या के दबाव को धीरे-धीरे कम किया जा रहा है। जनसंख्या नियंत्रण हेतु कहीं उपाय किए जा रहे हैं जिससे जलवायु में हो रहे परिवर्तन तथा देश में भू उपयोग संबंधी दबाव को भी कम किया जा रहा है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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