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लोकगीतों के आईने से 1857 का स्वतंत्रता संग्राम |
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The Freedom Struggle of 1857 Through The Mirror of Folk Songs | |||||||
Paper Id :
19349 Submission Date :
2024-10-17 Acceptance Date :
2024-10-25 Publication Date :
2024-10-26
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14001227 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
लोकगीत मानव हृदय की सहज अभिव्यक्ति होते हैं। लोकगीतों की पैठ इतनी गहरी होती
है कि वह इतिहास की सार वस्तु को अपने में समेट लेते हैं। सन 1857 के संबंध में जितने
भी लोकगीत रचे गए उनमें ब्रिटिश शासन की कठोर निंदा की गई। लोकगीत जनता की अदालत के फैसले होते हैं। अवसरवादी लेखकों व चाटुकार इतिहासकारों ने चाहे ब्रिटिश शासन
को सही ठहराया हो और उसकी प्रशंसा की हो, चाहे देशी रियासतों के
शासको ने ब्रिटिश सरकार के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए लाख भाग-दौड़ की हो
लेकिन जनता जो सोचती है वह लोकगीतों के माध्यम से उजागर होता है। अंग्रेजों ने
विद्रोह के भरपूर दमन का सहारा लिया, तोपें दागी, गोली चलाई, ऐसे में सत्य बोलने
का साहस किसी में नहीं था, लेकिन यह साहस हम लोकगीतों के माध्यम से जनता की आवाज में
लोकगीतों के रूप में सामने पाते हैं।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Folk songs are the natural expressions of the human heart. The penetration of folk songs is so deep that they contain the essence of history. All the folk songs composed in connection with the year 1857 strongly condemned the British rule. Folk songs are the verdicts of the court of the people. Opportunist writers and sycophant historians may have justified and praised the British rule, or the rulers of the princely states may have made great efforts to show their loyalty to the British government, but what the public thinks is revealed through folk songs. The British resorted to full suppression of the rebellion, fired cannons, fired bullets, in such a situation no one had the courage to speak the truth, but we find this courage in the form of folk songs in the voice of the public through folk songs. | ||||||
मुख्य शब्द | परिणीति, श्रद्धांजलि, इंग्लिस्तान लाक्षणिक, घोड़न, तालुल्केदार, धोरा, रकतवा। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Parineeti, Tribute, England Symbolic, Ghodan, Talulkedar, Dhora, Raktava. | ||||||
प्रस्तावना | 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारतीय इतिहास की एक युगांतकारी घटना है। इस घटना ने जनमानस को पूरी तरह झकझोर दिया था। जनता का एक बड़ा वर्ग पहली बार किसी नेक इरादे से एक साथ मिलकर आगे बढ़ा थ। इस घटना में अनेक वीरांगनाओं व वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी और यह सिद्ध करने का प्रयास किया था कि प्रतिद्वंद्वी चाहे कितना भी शक्तिशाली व बड़ा हो, यदि उद्देश्य नेक हो तो प्रतिद्वंदी का प्रतिकार करने का प्रयास जरुर करना चाहिए। |
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अध्ययन का उद्देश्य | इस शोधपत्र का एक
उद्देश्य यह है कि किस तरह अनेक भारतीय राजाओं ने गद्दार बनकर अंग्रेजों की
सहायता की थी। यदि ऐसा नहीं हुआ होता तो हमारा देश भारत कई शताब्दियों पहले आजाद
हो गया होता। विभाजित जनता हमेशा नुकसान में ही रहती है। |
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत शोध पत्र के लेखन में 1857 के स्वतंत्रता
संग्राम के संबंध में रचे गए बुंदेलखंडी, बांग्ला, अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी, खड़ी बोली ब्रज, मैथिली इत्यादि
लोकगीतों में रचे गए साहित्य की समीक्षा का पूरा प्रयास किया गया है। इसमें
पी.सी.जोशी रचित ‘इंकलाब-1857’, नित्यानंद तिवारी लिखित
(आलेख) ‘1857 और साहित्य समाज की कलंक कथा या इतिहास की
अनुभूति’, ‘अनभै सांचा’ जुलाई - सितंबर 2007, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) दिल्ली राज्य समिति द्वारा प्रकाशित
पुस्तिका ‘गदर 1857’ मई 2007, डॉ. विश्वामित्र उपाध्याय रचित ‘भारतीय क्रांतिकारी
आंदोलन और हिंदी साहित्य’, देवेंद्र सत्यार्थी रचित ‘ब्रज के लोकगीत’ (हिंदी आलेख), विलियम क्रुक रचित ‘सोंग्स अबाउट द किंग
ऑफ अवध’, अमृतलाल नागर रचित ‘गदर के फूल’ (अमृतलाल नागर
रचनावली), सिद्धेश्वर की ‘विचार दृष्टि’ त्रैमासिक पत्रिका
में आलेख ‘लोकगीतों में 1857 का प्रथम स्वतंत्रता
संग्राम’ आदि मुख्य हैं।
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मुख्य पाठ |
लोकजीवन के अनुभवो तथा सामाजिक व राजनैतिक वातावरण को अभिव्यक्त करने में समाज
में व्याप्त लोकगीतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सामाजिक व राजनीतिक वातावरण
की यह अनुभूति जब रागात्मक व लयात्मक रूप ले लेती है तो इसे गीत कहा जाता है। जब
समस्त समाज की भावनाएँ चेतन-अचेतन रूप में गीतबद्ध होकर बाहर निकलती हैं तो उन्हें
लोकगीत कहा जाता है। लोकगीत जनमानस का गीत होता है जो सामान्य जनता की आत्मा की
अनुभूति होता है। यह गीत मानव मन की सहज और सरल अभिव्यक्ति होते हैं। भारतीय इतिहास
में 1857 की क्राँति एक महत्वपूर्ण घटना है। यह क्राँति
किसी एक घटना का परिणाम न होकर पहले से हो रही अनेक छोटी-छोटी घटनाओं की परिणिति
थी। अंग्रेजों ने इस विद्रोह के भरपूर दमन का सहारा लिया, फांसी और तोपों से
उड़ाने की घटनाएँ आम हो चुकी थी, अंग्रेजों के विरुद्ध लिखने
या बोलने वाले को इतने भयंकर दंड दिए जाते थे कि आत्मा काँप उठती थी, ऐसे में
साहित्यकारों व इतिहासकारों ने चुप्पी साध ली लेकिन जनमानस को टटोल कर लोकगीत
लिखने वाले शांत नहीं रहे। उन्होंने सत्य को उजागर किया, अपनी श्रद्धांजलि
अर्पित की और इस सत्य को जन-जन तक पहुँचाया। 1857 के मुक्ति संग्राम के बारे
में जितने लोकगीत मिलते हैं उतने किसी और राष्ट्रीय घटना के संबंध में नहीं मिलते
हैं। लोकगीत इतिहास की सार वस्तु को अपने में समाहित कर लेते हैं। 1857 की क्रांति के
संबंध में जितने भी लोकगीत रचे गए उनमे ब्रिटिश शासन के प्रति घृणा या आलोचना का
भाव साफ नजर आता है। उनमें ब्रिटिश शासन के प्रति रोष व गुस्सा स्वतः झलकता है।
अलग-अलग प्रदेशों में विभिन्न भाषाओं में रचित ये लोकगीत सांप्रदायिकता व जातिवाद
को एकदम नकार कर सामूहिक भाव से अंग्रेजी शासन की आलोचना करते हैं। यह भारतीय लोक
जीवन की जन चेतना का सामूहिक स्वरूप हैं। बांग्ला लोकगीतों में उस समय सैनिकों की
सच्ची मनोदशा का वर्णन है जिसमें सैनिकों का उत्साह झलकता है, जैसे -
जल्दी भाग नदी में उठा तूफान दूर बहुत है इंग्लिशतान जल्दी-जल्दी भाग ओ बेईमान फिरंगिया इसी तरह एक अवधी लोकगीत द्वारा क्रांति के अखिल भारतीय स्वरूप को समझा जा सकता है -- श्रीपति महाराज तू विपत्ति निवारो कब अहै हजरत देश हो पहैला मुकाम कानहपुर भेज्यो दूसरा बनारस जात हो तीसरा मुकाम कलकत्तवा में भेज्यो बेगम तो भागी पहाड़ हो आलमबाग में गोलियां चलत हैं मच्छी भवन में तोप हो 1857 की क्रांति के संदर्भ में जो लोकगीत मिले हैं उनका अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि आधुनिक विचारों का शंखनाद 1857 की क्रांति से ही प्रारंभ हो गया था। इस क्रांति में स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। स्त्रियों ने अपनी प्रतिभा त्याग और बलिदान से एक नवीन इतिहास का निर्माण किया। बेगम हजरत महल, रानी लक्ष्मीबाई, रानी भवानी, पासी उषा देवी, लक्ष्मी बाई की सहेलियां कान्हा व मंडरा, राजेश्वरी देवी, शीला देवी, अजीजुन निशा आदि का नाम लिया जा सकता है। स्त्रियों की उपस्थिति को एक बुंदेली लोकगीत द्वारा देखा जा सकता है -- बांदा लूटो रात के गुईया सोऊत रई चिरैया सीला देवी लरी दौर के, संग में सहस मिहरियां , अंगरेजन तो करी लराई मारे लोग लुगाईयां गिरी गुसाई तब दौरे हैं, लरन लगे मरू मईया सुभद्रा कुमारी चौहान भी अपने गीत झांसी की रानी में लिखती हैं -- जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी, यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी होवे चुप इतिहास लगे सच्चाई को चाहे फांसी हो मदमाती विजय मिटा दे गोलों से चाहे झांसी खड़ी बोली के अंतर्गत उत्तर प्रदेश के लोकगीत में भी अंग्रेजों की दुर्दशा का भावपूर्ण चित्रण किया गया है -- आहा आओ और देखो मेरठ के बाजार में फिरंगी को घेर कर मारा गया है गोरे को घेर कर पीटा गया है मेरठ की बाजार में देखो अहा देखो उसकी बंदूक छीन ली गई है, उसका घोड़ा मरा पड़ा है, उसका रिवाल्वर टूट-फूट गया है, मेरठ के बाजार में, उसे घेरकर पीटा जाता है, देखो आहा देखो, फिरंगी को घेर कर पीटा जाता है मेरठ के बाजार में, देखो अहा देखो शब्दों का लाक्षणिक प्रयोग है। घोड़ा, बंदूक, रिवाल्वर शब्द अंग्रेजी शासन की प्रतिष्ठा और सामरिक शक्ति के प्रतीक हैं। इनके समाप्त हो जाने पर जनता खुश दिखाई देती है। मेरठ में बालक खेलकूद करते समय खड़ी बोली में ही गीत गाते थे -- लबालब कटोरा भरा खून से, फिरंगी को मारा बड़ी धूम से, लबालब कटोरे में हल्दी पड़ी, फिरंगी के लश्कर में भगदड़ पड़ी रिसाले से बोलो ऐ जनरल ! सुनो। नए कारतूस से मत मारा करो। वो गोरे फिरंगी जो थे उनके साथ सिपाहियों ने उनको लगाई थी लात। बृज के लोकगीतो मे भी 1857 की क्रांति का वर्णन है। इसमें अलीगढ़ क्षेत्र के स्थानीय क्रांतिकारी नेता अमानी सिंह द्वारा इक्लास तहसील के पास अंग्रेजों को शिकस्त देकर भरतपुर तक खदेड़ने का वर्णन है -- अमानी माने तो माने घोड़ी ना माने कैअंगरेज चढ़ी घोड़न पै कित्ते पैदलआए कित्ते पकर कुएं में डारे कित्ते उलट भागे करो अमानी ने जब पीछो बीन - बीन कर मारे अमानी माने तो माने घोड़ी ना माने। ब्रज के एक अन्य लोकगीत मे 1857 के स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर सत्यवीर की स्मृति सुरक्षित है -- महुओ मारि बैठना मारियो कोली के लोग तारे स्यावास गहलड वारे ब्रज के ही एक दूसरे लोकगीत मे एक स्त्री अपने देवर और पति की वीरता का वर्णन करती है जो फिरंगियों से लड़ रहे हैं-- फौज ने कीले पर धावा बोल दिया है मेरा देवर भनभनाती गोलियों का सामना कर रहा है मेरे प्यारे ने फिरंगी को मार डाला है मेरे देवर ने दो फिरंगियों को पकड़कर कोठरी में डाल दिया है मैंने उसे भला बुरा कहा तो गुस्से से लाल पीला हो गया वहाँ दूसरी तरफ आदेश दिया गया और फिर गोरी सेना तैयार हो गई और किले पर धावा बोल दिया लेकिन देखो मेरा देवर अभी भी निर्भय होकर उनसे लड़ रहा है जैसे यह एक खेल है ओ मेरी प्यारी सखी मैंने उसे बहुत समझाया, बुझाया (लेकिन वह मेरी एक नहीं सुनता ) अब गोले भी समाप्त हो चुके हैं (लेकिन) वह कहता है, मैं हथियार नहीं डालूंगा अतः वह बिल्कुल भी परवाह नहीं करता आह! मेरा छोटा देवर अवधी लोक गीतों में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम -- अवधी लोकगीतों में भी 1857 की क्रांति की अवध में हुई घटनाओं का जिक्र किया गया है। अवध के बादशाह वाजिदअली शाह को बदनाम करने के लिए अंग्रेजो ने घृणित नुस्खे अपनाए। उन्होंने उसे अयोग्य, रसिक, अपव्ययी ओर काहिल सिद्ध करने का भरसक प्रयास किया । 4फरवरी 1857 को उन्हे अवध की राजगद्दी से हटा दिया गया और 13 मार्च 1857 को बंदी बनाकर फौजी पहरे में कोलकाता भेज दिया गया। अवध की जनता अपने बादशाह से बेहद प्यार करती थी। इस अवधी लोकगीत मे वाजिदअलीशाह को कोलकाता भेज दिए जाने के बाद अवध के बिगड़े हालातों का वर्णन है हजरत जब से हजूर को देश निकाला दिया गया है हमारा देश पूरी तरह उजाड़ और सुनसान नजर आता है बादशाह सलामत शानो शौकत से वंचित हैं बाजी हारी गई, अब ख्याल कहां बेगमात सवार कराके देश से दूर भेज दी गई और हमेशा के लिए अपने देश से बिछुड़ गई अंग्रेज अपने तमाम दलबल समेत चढ़ आया ताकि देश पर फिर अधिकार कर ले किसी भी आदमी ने विरोध नहीं किया किसी भी आदमी ने विरोध नहीं किसी ने उसके (गोरों के) विरूद्ध हाथियार नही उठाए अंगरेज ने केसर बाग नष्ट कर दिया है मजा हजरत नही पाई, केसर बाग छुड़ाई कलकत्ते से चला फिरंगी तंबू कनात लगाई पार उतरी लखनऊ को आया डेरा विहिसी लगाई आस पास लखनऊ को घेरा सड़कन तोप धराई लोग-बाग सब व्याकुल होईगए अच्छी लूट मचाई तख्त उल्टिगया बादशाह का राज फिरंगी पाई। अवधी लोकगीत की इन पंक्तियों में जनसाधारण के मन की वेदना और पीड़ा झलकती है। इनमें उनका अपने बादशाह को खोने और देश के गुलाम होने का दर्द झलकता है। अवध के एक अन्य लोकगीत में ब्रिटिश सरकार द्वारा अवध के तालुका केंद्रों में फूट डालने के षड्यंत्र का वर्णन है । यह ऐतिहासिक रूप से सत्य है कि अवध के ताल्लुकेंदारों को जागीर, पद व सम्मान की रिश्वत देकर ब्रिटिश सरकार ने अपनी और मिलाने का षड्यंत्र रचा था जिसमें वह सफल रही-- राणा बहादुर सिपाही अवध में धूम मचाई मोरे रामा रे लिखि-लिखि चिट्ठियां लाट ने भेजी आन मिलो राणा भाई रे जंगी लिखत लंदन से मंगा दूं, अवध में सूबा बनाई रे जवाब सवाल लिखा राणा ने हमसे न करो चतुराई रे जब तक प्राण रहे तन भीतर तुमकन खोद बहाई रे जमीदार सब मिल गए गुलखन, मिल-मिल कर कमह रे एक तो बन सब कट-कट जाई, दूसरे गढ़ी खुदवाई रे अवध के पास ही संडीले के राजा गुलाबसिंह और गोंडा के राजा देवी बक्शसिंह के शौर्य व दृढ़निश्चय का वर्णन भी नीचे वर्णित अवधी लोकगीत में बखूबी किया गया है -- अपनी गढ़ी से बोले गुलाबसिंह सुन रे साहब मोरी बात रे पैदल मारे, सवार मारे, मारी फौज बे हिसाब रे बांके गुलाबसिंह रहिया तोरी हेरू एक बार दरस दिखवा रे पहली लड़ाई रहीमाबादरे, दूसरी संडी लवा में जीते, जामू में कीना मुकाम रे गुलाबसिंह ऐसे लड़े जैसे लंका में हनुमान रे गोंडा के राजा देवीबक्श सिंह की वीरता का वर्णन एक अन्य अवधी लोकगीत में इस तरह किया गया है -- रन में बाजे वीर का डंका शंका तनिक मरे की ना बेगम हजरत महल राजा देवी बक्श सिंह से कहती हैं -- अबकी बार राजा स्वामी से मिला दो चिरैया में हवें तुम्हारी हो राजा देवीबक्श सिंह की वीरता को प्रदर्शित करते हुए अंग्रेजों की पत्नियों अपने पति से कहती हैं-- डियर अब चलें पलट घर चले राजा है बड़ा लडैया, सजन अब चलो पलट घर चले बुंदेली लोकगीतों में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम -- बुंदेलखंड की आबो हवा भी 1857 की क्रांति से अछूती नहीं थी। बुंदेलखंड आज भी रानी लक्ष्मीबाई की शौर्य गाथा से गूंज रहा है। सुप्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’ का आधार भी एक बुंदेलखंडी लोकगीत प्रतीत होता है-- खूब लड़ी मर्दानी अरे झांसी वारी रानी बुर्जन बुर्जन तोप लगा दई गोला चलाएं असमानी अरे झांसी वारी रानी सिगरे सिपाहियों को लड्डू जलेबी अपन चबाई गुड धाणी रे अरे झांसी वारी रानी रे सिगरे सिपाहियों को शरबत और लस्सी, अपन पियो ठंडा पानी रे अरे झांसी वारी रानी रे सिगरे सिपाहियों को शाल - दुशाले आप पहने झुन्ना सारी रे अरे झांसी वारी रानी रे छोड़ मोर्चा लश्कर को दोरी ढूंढे हूं मिले ना पानी रे अरे झांसी वारी रानी रे एक बुंदेलखंडी लोकगीत में झांसी के किले के मुख्य द्वार के रक्षक खुदावाद खांके के दृढ़ निश्चय और शौर्य का वर्णन किया गया है-- मरना है सबको एक दिन सुन ले मेरी भाई रानी खातिर मरने की मेरी तारीख है आई ले तलवार करूंगा में फिरंगी की कटाई दुनिया मुझको याद करेगी मेरी भाई भोजपुरी लोकगीत और 1857 का स्वतंत्रता संग्राम -- भोजपुरी लोकगीतों में भी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की विविध घटनाओं का उल्लेख मिलता है। भोजपुरी लोकगीतों में हमें जगदीशपुर के शासक कुंवरसिंह की वीरगाथाओं का वर्णन मिलता है। इस 75 वर्षीय क्रांति वीर ने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी और अंतिम सांस तक साम्राज्यवादी शासको से लड़ता रहा। उनकी वीरता का वर्णन भोजपुरी लोकगीतों में इस तरह मिलता है-- बाबू कुंवरसिंह तेगवा बहादुर आरा में धूम मचाई रे मुठ्ठी भर सेना लेके कुंवर सिंह फिरंगिया पर छापा गिराई रे कप्तान लिखे मिस्टर कुंवर सिंह आरा का सूबा बनाईब रे तोहफा देवे, इनाम देवे, तोहके राजा बनाईब रे बाबू कुंवर सिंह देले सनेसवा मोसे न चली चतुराई रे जब तक रहे रकतवा की बूंद, मारग नई दिलाई रे इस लोकगीत में बाबू कुंवर सिंह की सराहना की गई है कि उन्होंने अंग्रेजों की चालों और प्रलोभनों को ठुकराकर अंतिम रक्त की बूंद तक स्वतंत्रता संग्राम जारी रखने का संकल्प लिया था। मैथिली लोकगीतों में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम -- मैथिली लोकगीतों में भी 1857 की जन चेतना व संकल्प की अभिव्यक्ति मिलती है-- गरजब हम मेघ जका बरिसब हम पा नी जका उड़ाय देव हम लंदन के हुंकार से बिजली जाका करडाके - करडाके आन्ही जका तड़की तड़की भाग देव गोरा के टंकार से कुहुब हम कोइल जका, नायब हम मोर जका मना लेब माता के बीना के झंकार से ब्रज के लोकगीतों में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम -- ब्रज क्षेत्र के लोकगीतों में भी 1857 के मुक्ति संग्राम की ज्वाला का वर्णन मिलता है। हरिफूल नमक बृजवासी लोक कवि ने 1857 के क्रांति वीर तांत्या टोपे की वीरता का वर्णन किया है -- हाथ में नग्न खड्ग, मारिब कुं एक पग तन मन देश कुं समर्पित कीनो है आगे बढ़ी पीछे हटी, धाई को मित्तक्का काटी टूक- टूक छिन मे ‘विढम्म’ दल किनो है सेंधिया सो औघड़ हराम खोर और नाही मिलिगो फिरंगीया ते सांसाघात दीनो है मनै हरीफूल धन्नि तांत्या से वीर तनै सीस कू उतार कै सूजस जग लिन्हो है राजस्थानी लोकगीतों में 1857 का विद्रोह -- राजस्थानी लोकगीतों में भी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी देखने को मिलती है राजस्थान वीरों की धरती है जहां त्याग शौर्य में बलिदान की दीर्घ एवं समृद्ध परंपरा रही है सन 57 से पहले भी राजस्थान की अनेक रियासतों ने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी थी भरतपुर के एक लोकगीत में घोड़ा यानी अंग्रेजों को ललकारा गया है-- गोरा हट जा राज भरतपुर के रे गोरा हट जा भरतपुर गढ़ बांको रे, गोरा हट जा यूं मत जाने गोरा लड़े बेटो जाट का खडे सामने सो गोरा, लड़े जाट के दो छोरा ओ तो कुंवर लडे रे राजा दशरथ के गोरा हट जा इला न देणी आपणी हालरियां हुलराय पूत सिखावे पालणे मरण बड़ाई माय इसी तरह जोधपुर के महाराजा मानसिंह के आश्रित कवि बांकीदास ने लिखा -- आयो अंगरेज मुल्क है ऊपर आहंस लीधो खांचे उरा धणिय मरै नदीधी, धणियौ उमौ गई धर्रा जब सांभर झील एक संधि द्वारा अंग्रेजों के अधिकार में चली गई तो एक लोकगीत में अंग्रेजी सरकार की साम्राज्य लिप्सा पर तीखे व्यंग्य बाण छोड़े गए -- महारो राजा तो भोलो, सांभर तो दे दीनी अंगरेज ने म्हारा टाबर तो भोलो, रोटी तो मांगे तीखे लूण री जब आउवा के युद्ध में अंग्रेज सेनापति मारा गया तो उसको गढ़ के फाटक पर टांग दिया गया, इसका वर्णन एक लोकगीत मे इस प्रकार मिलता है -- ढोल बाजे थाली बाजे मेलो बाजै बांकियो अंजट ने मार कै दरवाजै नाखियो जूझे आऊवो, अरे हां जूझे आऊवो
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निष्कर्ष |
1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारतीय इतिहास की वह महत्वपूर्ण घटना है जब भारतवासियों ने अंग्रेजी दासता का जुआ अपने कंधे से उतार फेंकने का वीरतापूर्ण सामूहिक कदम उठाने का साहस दिखाया था। भारतीय इतिहास की इस घटना का जिक्र हमें जनमानस में रचे-बसे लोकगीतों में मिलता है। लोकगीत इतिहास की सार वस्तु को अपने में समेट लेते हैं। सन 1857 के संबंध में जितने भी अवधी, भोजपुरी, बुंदेलखंडी, ब्रज, राजस्थानी इत्यादि लोकगीत रचे गए उनमें ब्रिटिशशासन की घोर निंदा की गई और उसे स्वीकार करने के अयोग्य बताया गया। अंग्रेजी शोषण एवम साम्राज्य लिप्सा के प्रति रोष इन लोकगीतों की विशेषता है। इन लोकगीतों में औपनिवेशिकता का विरोध एवम राजनीतिक चेतना की जनजागृति का प्रयास किया गया है। इनमें सांप्रदायिकता , जातिवाद को किनारे करते हुए अंग्रेजी शासन को छेदने का प्रयास किया गया है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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