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मलिन-बस्तियों की अवस्थिति एवं पर्यावरणीय समस्याएँ: बरेली महानगर का एक भौगोलिक अध्ययन |
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Location of Slums and Environmental Problems: A Geographical Study Oo Bareilly Metropolis | |||||||
Paper Id :
19382 Submission Date :
2024-10-12 Acceptance Date :
2024-10-22 Publication Date :
2024-10-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14222504 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
औद्योगिकरण एवं नगरीकरण ने मलिन-बस्तियों की समस्या को जन्म दिया है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के कारण नगरीय क्षेत्र में मलिन-बस्तियों की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। नगरीय फैलाव के परिणाम स्वरूप मलिन-बस्तियों के भौगोलिक क्षेत्रफल में वृद्धि होती जा रही है। सामान्यतः मलिन-बस्तियों की अवस्थिति यातायात एवं परिवहन सुविधाओं के किनारे, बड़े नालों के किनारे, उद्योग-धन्धों के समीप, सरकारी खाली भूखण्डों तथा अनाधिकृत भूखण्डों पर मलिन-बस्तियों का विस्तार हुआ है। ग्रामीण क्षेत्र से विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किये गये पलायन से नगरों में मलिन-बस्तियों की उत्पत्ति हुई है। नगर के आन्तरिक भाग में मलिन-बस्तियों की संख्या अधिक देखने को मिलती है। मलिन-बस्तियों में स्वच्छता का अभाव होने के कारण गन्दगी का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है, जिस कारण यहां पर विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याओं का जन्म हुआ है। शौचालय, पेयजल तथा स्वच्छता का यहां पर निम्न स्तर देखने को मिलता है। छोटे-छोटे आवासों में कई परिवार देखने को मिलते हैं। साक्षरता का निम्न स्तर तथा बेरोजगारी के कारण गरीबी का स्तर उच्च पाया जाता है। निम्न आय होने के कारण खान-पान एवं रहन-सहन का स्तर निम्न बना हुआ है। कूड़ा प्रबन्धन की समस्या ने यहां पर विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है, जिसने मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाला है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Industrialization and urbanization have given rise to the problem of slums. Due to the rapid increase in population, the population of slums is increasing in urban areas. As a result of urban expansion, the geographical area of slums is increasing. Generally, slums are located along traffic and transportation facilities, along big drains, near industries, on government vacant plots and unauthorized plots. Slums have emerged in cities due to migration from rural areas to fulfill various purposes. The number of slums is more in the inner part of the city. Due to lack of cleanliness in slums, the outbreak of dirt is more, due to which various types of environmental problems have arisen here. Low level of toilets, drinking water and cleanliness is seen here. Many families are seen in small houses. Due to low literacy and unemployment, the poverty level is found to be high. Due to low income, the standard of food and living standards remains low. The problem of garbage management has given rise to various types of environmental problems here, which have adversely affected human health. | ||||||
मुख्य शब्द | मलिन-बस्तियां, पर्यावरणीय समस्याएँ, मूलभूत सुविधाएँ, अवस्थिति, प्रभाव, परिवर्तन। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Slums, Environmental Problems, Basic Amenities, Location, Impact, Changes. | ||||||
प्रस्तावना | विकासशील देशों में नगरों एवं कस्बों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। ग्रामीण क्षेत्र का नगरीय क्षेत्र में सम्मिलित होने से न केवल नगर का भौतिक विस्तार हो रहा है, बल्कि मलिन-बस्तियों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। मलिन-बस्तियों की उत्पत्ति का प्रमुख कारण ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र में रोजगार की तलाश में आकर बसने वाले व्यक्तियों की बस्ती से है। निम्न आय होने के कारण इन श्रमिकों ने उद्योग-धन्धों के समीप, सड़क मार्गों व रेलवे लाइन के किनारे तथा नालों के किनारे पर अस्थायी झोपड़ी बनाकर मलिन-बस्ती को जन्म दिया है। इसके साथ ही साथ नगरीय सीमा के विस्तार के कारण ग्रामीण बस्तियां नगरीय सीमा के अन्तर्गत सम्मिलित हो गयी है, जिनसे मलिन-बस्तियों की संख्या में वृद्धि हुई है। मलिन-बस्तियों में निम्न स्तरीय सुविधाओं की उपलब्धताा के कारण विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याओं का जन्म हुआ है। यहां पर वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण का स्तर उच्च प्राप्त होता है। सड़कों, गलियों, नालियों एवं सीवर लाइन की मरम्मत एवं रख-रखाव की समस्या के कारण जलभराव की स्थिति बनी रहती है, जिस कारण वायु प्रदूषण एवं जल प्रदूषण की समस्या का उच्च स्तर बना रहता है। यहां पर की सुविधाऐं अपेक्षाकृत कम एवं निम्न स्तर की हैं। इन मलिन-बस्तियों में शौचालय की उचित व्यवस्था न हो पाने के कारण अधिकांश परिवार खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याऐं उत्पन्न हो गयी हैं। यह पर्यावरणीय समस्याऐं मानव जीवन को प्रभावित कर रही हैं, जिस कारण यहां पर निम्न जीवन प्रत्याशा, बीमारियों का उच्च स्तर तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता निम्न स्तर की बनी हुई हैं। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत अध्ययन के उद्देश्य निम्नवत् है-
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण करने हेतु विभिन्न विद्वानों
द्वारा मलिन-बस्तियों की समस्याऐं एवं पर्यावरणीय प्रभाव के सन्दर्भ में पूर्व में
किये गये कार्यों का मूल्यांकन किया गया है, जिन्हें कालक्रमानुसार
निम्न प्रकार से व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया है-
फ्रमकिन (2002) ने अपना शोध पत्र नगरीय फैलाव एवं
जनस्वास्थ्य की प्रमुख समस्याओं का मूल्यांकन के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया।
इन्होंने अपने शोध पत्र में बताया कि नगरीय फैलाव से विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय
समस्याओं का जन्म हुआ है। इन समस्याओं ने मानव जीवन को प्रभावित किया है, जिनसे
भयंकर बीमारियों की उत्पत्ति हुई है। बंधोपाध्याय एवं अग्रवाल (2013) ने भारत में
मलिन-बस्तियां-अतीत एवं वर्तमान की स्थिति का मूल्यांकन अपने शोध पत्र में
प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने शोध पत्र में बताया कि भारत में प्राचीन समय में
मलिन-बस्तियों का उद्भव उद्योग-धन्धों के निकटवर्ती क्षेत्र तथा रेलवे लाइन के
किनारे पर हुआ। वर्तमान में मलिन-बस्तियां मुख्यतः नगर के आन्तरिक भाग में
सम्मिलित हो गयी हैं। नगर के केन्द्र बिन्दु के समीप ही मलिन-बस्तियां विद्यमान
हैं। नगर की परिधि पर मिलने वाली मलिन-बस्तियां नगर की सीमा में विस्तार के कारण
सम्मिलित ग्रामीण बस्तियां हैं। सानयाल एवं चन्द्रा (2015) ने आगरा नगर में
मलिन-बस्तियों का मूल्यांकन बहु-स्तरीय आधार पर किया। इन्होंने अपने अध्ययन में
पाया कि नगर में मलिन-बस्तियों का विकास विभिन्न चरणों में हुआ है तथा विभिन्न
स्थानों पर मलिन-बस्तियों के बसाव की स्थिति भिन्न-भिन्न है। इनकी समस्याऐं भौतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा पर्यावरणीय कई रूपों में
विभाजित है। कमरूज्जामन एवं हाकिम (2016) ने बांग्लादेश की राजधानी नगर ढाका में
मलिन-बस्तियों में निवास करने वाले व्यक्तियों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का
मूल्यांकन अपने शोध पत्र में प्रस्तुत किया। इन्होंने इनकी सामाजिक एवं आर्थिक
विपन्नता के प्रमुख कारकों का सूक्ष्म स्तरीय विश्लेषण प्रस्तुत किया। प्रसाद एवं
गुप्ता (2016) ने एक शोध-पत्र “मलिन-बस्तियों में
समस्याऐं एवं समाधानः भारत के परिप्रेक्ष्य” में
प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने शोध अध्ययन में बताया कि भारत एक विकासशील देश है, जहां पर महानगरों का विकास तीव्र गति से हो रहा है। भारत में पिछले दो
दशकों में ग्रामीण क्षेत्र एवं छोटे कस्बों एवं नगरों से जनसंख्या का तीव्र गति से
स्थानान्तरण हुआ है, जिसने पर्यावरण का हृास किया है।
इसी के साथ नगरों में मलिन-बस्तियों की जनसंख्या एवं आकार में तीव्र गति से वृद्धि
हुई है। आवास की मांग बढ़ने के कारण जमीनों की कीमत में तीव्र गति से वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप नगरीय आकृति में तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है। नगरीय
परिधि पर कृषि भूमि के अतिक्रमण तथा प्राकृतिक वनस्पति के दोहन से प्राकृतिक
वातावरण का हृास तीव्र गति से हुआ है। सिन्हा एवं शेखर (2017) ने अपना शोध-पत्र “मलिन-बस्तियों की समस्याऐं एवं विकास- दिल्ली एवं मुम्बई का एक अध्ययन” नामक शीर्षक पर प्रस्तुत किया। इन्होंने बताया कि इन बस्तियों में मूल
सुविधाऐं भी उपलब्ध नहीं हैं। मूल सुविधाओं के अभाव में इनका जीवन बहुत कष्टमय बना
हुआ है। निम्न मजदूरी तथा गरीबी व बेरोजगारी इन लोगों की आर्थिक समस्याऐं हैं।
अशिक्षा एवं परिवार के बड़े आकार के कारण इनमें पोषण तत्वों का अभाव पाया जाता है।
जल भराव के कारण यहां पर विभिन्न प्रकार की बीमारियों का जन्म हो रहा है।
बेरोजगारी के कारण ये लोग विभिन्न प्रकार की आपराधिक गतिविधियों में सम्मिलित हो
जाते हैं। जमन, गोस्वामी एवं हसन (2018) ने अपना
शोध-पत्र “गोहाटी (असम) में मलिन-बस्तियों के निवासियों
की स्वास्थ्य समस्याओं के सन्दर्भ” में प्रस्तुत किया।
इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि डिब्रूगढ़ में मलिन-बस्तियों की वृद्धि की दर
13.73 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। असम राज्य में कुल जनसंख्या का 4.8 प्रतिशत भाग
मलिन-बस्तियों में निवास करता है। इन बस्तियों में निवास करने वाले अधिकांशतः
व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले हैं। अधिकांश व्यक्तियों को
रोजगार की प्राप्ति अनियमित रूप से होती है। इनकी आर्थिक स्थिति न्यून स्तर पर है।
इनके पास आधारभूत सुविधाऐं भी उपलब्ध हैं। नाथ एवं सिन्हा (2019) ने अपना अध्ययन “मलिन-बस्तियों में निवास करने वाली जनसंख्या की जीवन गुणवत्ता” के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि
मलिन-बस्तियों में मूलभूत सुविधाऐं उपलब्ध न होने से इनका जीवन बहुत कष्टमय बना
हुआ है। यह सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से भी पिछड़े हुए हैं। इनको विभिन्न प्रकार
की भयंकर पर्यावरणीय समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनको जोखिम उठाने वाली
जनसंख्या की भी संज्ञा दी जाती है। अधिकांश निवासियों की रहन-सहन की स्थिति बहुत
दयनीय है। ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र की ओर प्रवास तथा नगरीकरण इन
मलिन-बस्तियों की वृद्धि का प्रमुख कारण है। शर्मा (2020) ने अपना शोध-पत्र “भारत में मलिन-बस्तियों की स्थिति का विश्लेषण” नामक शीर्षक पर प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि भारत एक
विकासशील देश है, जिसमें जनसंख्या वृद्धि दर उच्च है।
औद्योगिकरण एवं नगरीकरण के परिणामस्वरूप ग्रामीण जनसंख्या का स्थानान्तरण नगरों की
ओर हो रहा है, जिससे नगरों में मलिन-बस्तियों की
उत्पत्ति हो रही है। इन मलिन-बस्तियों में अति निम्न स्तर की सुविधाऐं मिलती हैं।
इन बस्तियों में निवास करने वाली अधिकांश जनसंख्या विर्निमाण के कार्यों में
संलग्न है। गरीबी एवं बेरोजगारी यहां की प्रमुख समस्याऐं हैं। गन्दी नालियां व
संर्कीण गलियों में वर्ष पर्यन्त जल भराव की स्थिति बनी रहती है, जिससे विभिन्न प्रकार की बीमारियों का जन्म होता है। रानी एवं पंजियार
(2022) ने एक शोध-पत्र “मलिन-बस्तियों में कामकाजी
महिलाओं की आहार अंतर्ग्रहण एवं पोषणीय अवस्था का एक अध्ययन मधुवनी नगर के सम्बन्ध
में” प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि
कार्यशील/कामकाजी महिलाओं की उम्र जैसे-जैसे बढ़ रही है, उनमें कुपोषण की समस्या भी बढ़ती जा रही है। कुपोषण से ग्रहस्त महिलाओं की
आयु 30-40 वर्ष प्राप्त हुई है। कामकाजी महिलाऐं अल्पभारित समस्या से भी ग्रहस्त
हैं, क्योंकि यह महिलाऐं खाना बनाने के लिए ईंधन की आपूर्ति
जंगलों से एकत्र करती हैं। इन महिलाओं के भोजन में उच्च कैलोरी वाले पदार्थों का
अभाव पाया गया है। प्रोटीन, आयरन, विटामिन ‘ए’, विटामिन ‘सी’ तथा निम्न कैलोरी भोजन इत्यादि के अभाव के
कारण अधिकांश महिलाओं की पोषणीय स्थिति खराब पायी गयी है। कामकाजी महिलाओं में
पोषण तत्वों की जानकारी के बारे में अभाव की स्थिति प्राप्त हुई है। दूध एवं दूध
से निर्मित उत्पाद का नियमित सेवन करने वाली कामकाजी महिलाऐं 3.75 प्रतिशत प्राप्त
हुई हैं, जो इन बस्तियों में निवास करने वाली महिलाओं
में अति न्यून है। मिश्र एवं यादव (2022) ने अपना शोध-पत्र “मलिन-बस्ती निवासियों की सामाजिक एवं शैक्षणिक स्थिति का समाजशास्त्रीय
अध्ययन (इलाहाबाद के विशेष सन्दर्भ में)” प्रस्तुत
किया। इन्होंने अपने अध्ययन में इलाहाबाद नगर की मलिन-बस्तियों में जीवन की
गुणवत्ता एवं विकास कार्य की प्रभाविता से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर अध्ययन
प्रस्तुत किया। इन्होंने 5 बस्तियों में से 300 परिवार न्यादर्श के रूप में चयनित
किये, जिनके आधार पर बताया कि 86.3 प्रतिशत परिवारों
में सुविधायुक्त मकानों की उपलब्धता के कारण बच्चों की शिक्षा में सुधार हुआ है।
इन परिवारों में 51.7 प्रतिशत परिवारों के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्राप्त हुई
है। 35.3 प्रतिशत बच्चों को निःशुल्क पुस्तक तथा 25.0 प्रतिशत परिवार के बच्चों को
विद्यालय में मध्याहन भोजन प्राप्त हुआ है। चन्द्रा (2022) ने अपना शोध अध्ययन “आगरा नगर में स्वच्छता एवं स्वास्थ्य समस्याओं का एक भौगोलिक अध्ययन” के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने अध्ययन में नगरीय फैलाव के
कारण सुविधाओं का हृास, नगरीय जनसंख्या वृद्धि, मलिन-बस्तियों की पहचान तथा उनकी प्रमुख समस्याओं का अध्ययन प्रस्तुत
किया। मलिन-बस्तियों में निवास करने वाले व्यक्तियों में 57.8 प्रतिशत की
स्वास्थ्य स्थिति निम्न पायी गयी, जबकि 37.6 प्रतिशत
व्यक्तियों का स्वास्थ्य स्तर औसत तथा 4.7 प्रतिशत व्यक्तियों का स्वास्थ्य स्तर
उत्तम प्राप्त हुआ। यहां पर 71 प्रतिशत मलिन-बस्तियों को पेयजल की सुविधा प्राप्त
है, जबकि 26 प्रतिशत मलिन-बस्तियों में स्वच्छ पेयजल की
सुविधा प्राप्त नहीं है। इनमें 3 प्रतिशत मलिन-बस्तियों को पेयजल की आंशिक सुविधा
प्राप्त है। |
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मुख्य पाठ |
शोध समस्या अध्ययन क्षेत्र बरेली महानगर में अवस्थित मलिन-बस्तियों में
विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याऐं विद्यमान हैं। इन समस्याओं के बढ़ते स्तर के
कारण मानव स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण एवं ध्वनि
प्रदूषण के उच्च स्तर ने मानव शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म दिया
है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के परिणामस्वरूप नगरों में मलिन-बस्तियों की
संख्या व आकार में वृद्धि होती जा रही है। नगरीय सीमा के विस्तार से मलिन-बस्तियों
की संख्या में वृद्धि हुई है, जिससे नगरीय सुविधाओं पर
दबाव तीव्र गति से बढ़ा है। अध्ययन क्षेत्र प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण करने हेतु बरेली महानगर का चयन
किया गया है। यह उत्तर प्रदेश राज्य में बरेली जनपद का मुख्यालय है। इसकी अवस्थिति 28°10' उत्तरी अक्षांश तथा 78°23' पूर्वी देशान्तर के
मध्य अवस्थित है। बरेली जनपद की उत्तरी सीमा पर उद्यमसिंह नगर, पूर्वी सीमा पर पीलीभीत, दक्षिण-पूर्व में
शाहजहांपुर, दक्षिणी सीमा पर बदायूँ तथा पश्चिमी सीमा पर
रामपुर जनपद सम्मिलित है। बरेली महानगर में मलिन-बस्तियों की अवस्थिति वर्ष 2021 के
अनुसार बरेली नगर निगम में 85 मलिन-बस्तियां
हैं। इन मलिन-बस्तियों की अवस्थिति मुख्य रूप से मुख्य नालों के किनारे सड़क एवं
रेल परिवहन मार्ग के किनारे, उद्योग-धन्धों के समीप, जलाश्य के किनारे तथा खाली
सरकारी भूमि पर अवस्थित है। अध्ययन क्षेत्र बरेली महानगर में उपलब्ध मलिन-बस्तियों
की अवस्थिति को निम्न सारणी में दर्शाया गया है- उपरोक्त सारणी के अनुसार अध्ययन क्षेत्र में 11.76 प्रतिशत
बस्तियां मुख्य नालों के किनारे पर अवस्थित है, जबकि 18.85 प्रतिशत
मलिन-बस्तियां रेलवे लाइन के किनारे व 29.41 प्रतिशत
मलिन-बस्तियां सड़क मार्गों के किनारे पर अवस्थित है। यहां पर 15.29 प्रतिशत
बस्तियां जलाश्यों के किनारे तथा 4.70 प्रतिशत
बस्तियां उद्योग-धन्धों के समीप अवस्थित है। यहां पर 15.29 प्रतिशत
मलिन-बस्तियां रिहायशी क्षेत्र तथा 4.70 प्रतिशत
बस्तियां अन्य क्षेत्रों के समीप अवस्थित है। मलिन-बस्तियों के समीपवर्ती क्षेत्र अध्ययन क्षेत्र बरेली महानगर में मलिन-बस्तियों के
समीपवर्ती क्षेत्र में रिहायशी, औद्योगिक व्यवसायिक, संस्थागत क्षेत्र तथा अन्य
क्षेत्रों के समीप अवस्थिति है। मलिन-बस्तियों के समीपवर्ती क्षेत्र की अवस्थिति
को निम्न सारणी में दर्शाया गया है- उपरोक्त सारणी के अनुसार अध्ययन क्षेत्र बरेली महानगर में 56.47 प्रतिशत
मलिन-बस्तियों के समीपवर्ती भाग में रिहायशी क्षेत्र अवस्थित हैं। यहां पर 17.65 प्रतिशत
मलिन-बस्तियों के समीप औद्योगिक क्षेत्र अवस्थित हैं। यहां पर 7.06 प्रतिशत
मलिन-बस्तियों के समीप व्यवसायिक क्षेत्र अवस्थित हैं। यहां पर 3.53 प्रतिशत
मलिन-बस्तियों के समीपवर्ती संस्थागत क्षेत्र अवस्थित हैं। यहां पर 15.29 प्रतिशत
मलिन-बस्तियों के समीप अन्य प्रकार का क्षेत्र अवस्थित हैं। मलिन-बस्तियों में पर्यावरणीय समस्याऐं अध्ययन क्षेत्र बरेली महानगर में मलिन-बस्तियों की अवस्थिति
विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याओं से ग्रहस्त हैं। यहां पर जल, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण की
समस्या मुख्यतः विद्यमान हैं। मलिन-बस्तियों की भौगोलिक अवस्थिति के कारण यहां पर
निवास करने वाली जनसंख्या दमा, टी॰बी॰, सांस, एलर्जी, फेफड़ों की समस्या इत्यादि
से ग्रहस्त है। मलिन-बस्तियों की अवस्थिति एवं प्रमुख पर्यावरणीय समस्याओं को
निम्न सारणी में दर्शाया गया है- उपरोक्त सारणी में मलिन-बस्तियों की अवस्थिति एवं
पर्यावरणीय समस्याओं को दर्शाया गया है। मलिन-बस्तियों में अवस्थिति के अनुसार
प्रदूषण की समस्या विद्यमान है। नालों एवं जलाश्यों के समीप अवस्थित बस्तियों में
जल प्रदूषण का स्तर उच्च पाया गया है, क्योंकि नालों एवं
जलाश्यों का दूषित जल रिस-रिसकर भूमिगत जल में मिलकर भूमिगत जल को दूषित कर देता
है। यह दूषित जल पीने के लिए उपयोग में लाया जाता है। सड़क एवं रेलवे लाइन के समीप
अवस्थित मलिन-बस्तियों में मुख्यतः वायु प्रदूषण की समस्या विद्यमान है, क्योंकि धूल एवं धुएँ के
कण परिवहन के साधनों द्वारा वायु मण्डल में उड़ा दिये जाते हैं, जो श्वसन के कारण मानव के
फेफड़ों को प्रभावित करते हैं। उद्योग-धन्धों के समीप अवस्थित मलिन-बस्तियों में
वायु एवं ध्वनि प्रदूषण की समस्या विद्यमान है। कारखानों की चिमनियों से निकलने
वाले धुएँ के वायु मण्डल में विलीन होने के कारण वायु की गुणवत्ता को घटा देते हैं, जिससे विभिन्न प्रकार की
समस्याओं का जन्म होता है। वायु प्रदूषण अध्ययन क्षेत्र बरेली महानगर में अवस्थित मलिन-बस्तियों में वायु प्रदूषण का स्तर ज्ञात करने के लिए 10 मलिन-बस्तियों से वायु की गुणवत्ता के सेम्पल लिये गये हैं, जिनके आधार पर वायु गुणवत्ता सूचकांक को प्राप्त किया गया है। चयनित मलिन-बस्तियों में वायु की गुणवत्ता के सूचकांक कोे निम्न सारणी में दर्शाया गया है- उपरोक्त सारणी में अध्ययन क्षेत्र बरेली महानगर की 10 मलिन-बस्तियों
से वायु गुणवत्ता सूचकांक के सन्दर्भ में आंकड़ों का एकत्रीकरण किया गया है, जिसमें यहां पर औसत वायु
गुणवत्ता सूचकांक 6.00
A.M. – 8.00 A.M. तक 148.6 प्राप्त
हुआ है, जबकि 6.00
P.M. – 8.00 P.M. तक 175.6 सूचकांक
प्राप्त हुआ है। उक्त चयनित बस्तियों में वायु प्रदूषण का उच्च स्तर प्राप्त हुआ
है। यहां पर वायु की गुणवत्ता खराब है। इन क्षेत्रों में मिट्टी धूल के कण, धुएँ के कण तथा राख के
कणों की प्रधानता के कारण वायु की गुणवत्ता खराब है। टूटी-फूटी सड़कें, गलियां व कूड़ा निस्तारण की
उचित सुविधा प्राप्त न हो पाने व उद्योग-धन्धों से निकलने वाला धुंआ व वाहनों के
धुएँ के कारण यहां पर वायु की गुणवत्ता खराब प्राप्त हुई है। यहां की खराब वायु
मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती है। जल प्रदूषण मलिन-बस्तियों में दूषित जल की समस्या सर्वत्र क्षेत्र में विद्यमान है। इन मलिन-बस्तियों में सीवर लाइन व नालियों का खुला होना, जलभराव की समस्या, जल निकासी का उचित प्रबन्ध न होना, शौचालय के जल का नालियों में प्रवाह इत्यादि के कारण भूमिगत जल की गुणवत्ता खराब होती जा रही है। इसी कारण इन बस्तियों में जल प्रदूषण की समस्या प्राप्त हुई है। उद्योग-धन्धों के समीप अवस्थित मलिन-बस्तियों में रासायनिक पदार्थों का अपशिष्ट भाग जल में घुलकर भूमिगत जल में मिलने से पानी और अधिक दूषित होता जा रहा है। नालों के किनारे अवस्थित मलिन-बस्तियों में जल प्रदूषण का स्तर सर्वाधिक प्राप्त हुआ है। अध्ययन क्षेत्र बरेली महानगर में चयनित मलिन-बस्तियों में भूमिगत जल की गुणवत्ता को निम्न सारणी में दर्शाया गया है- उपरोक्त सारणी के अनुसार मलिन-बस्तियों में भूमिगत जल का
औसत पी॰एच॰ मान 8.06,
टी॰डी॰एस॰ 1105.5 mg/l, क्लोराइड 117.15
mg/l, क्षारीयता 431.80 mg/l, कुल कठोरता 784.5
mg/l, सल्फेट 88 mg/l, नाइट्रेट 32.6
mg/l, बी॰ओ॰डी॰ 1.89 mg/l तथा डी॰ओ॰ 1.97
mg/l प्राप्त हुआ है। यहां पर भूमिगत जल का सर्वोच्च पी॰एच॰ मान 8.30
मथुरापुर मलिन-बस्ती में तथा सबसे कम 7.67 अटेरिया
में प्राप्त हुआ है। टी॰डी॰एस॰ की सर्वोच्च मात्रा 1430 mg/l मथुरापुर तथा सबसे कम 830 mg/l नधौसी में प्राप्त
हुआ है। यहां पर भूमिगत जल में क्लोराइड की सर्वोच्च मात्रा 141.65 mg/l मथुरापुर तथा सबसे कम 87.30 mg/l अटेरिया में
प्राप्त हुआ। यहां पर क्षारीयता की सर्वोच्च मात्रा 530 mg/l बिडोलिया तथा सबसे कम 345 mg/l एजाज नगर में प्राप्त
हुआ है। यहां पर कुल कठोरता की सर्वोच्च मात्रा 1020 mg/l बिडोलिया
तथा सबसे कम 450 mg/l परसाखेड़ा में प्राप्त हुआ है। सल्फेट
की सर्वोच्च मात्रा 110 mg/l नधौसी तथा सबसे कम 68
mg/l मथुरापुर में प्राप्त हुई है। नाइट्रेट की सर्वोच्च मात्रा 76
mg/l अटेरिया तथा सबसे कम मात्रा 12 mg/l कटघर
में प्राप्त हुई है। यहां पर भूमिगत जल में बी॰ओ॰डी॰ की सर्वोच्च मात्रा 2.25
mg/l महेशपुर तथा सबसे कम 1.40 mg/l नधौसी में
प्राप्त हुई है। यहां पर भूमिगत जल में डी॰ओ॰ की सर्वोच्च मात्रा 2.30 mg/l
कटघर तथा सबसे कम 1.56 mg/l महेशपुर में
प्राप्त हुई है। मलिन-बस्तियों में उच्च जनसंख्या संकेन्द्रणः अध्ययन क्षेत्र बरेली महानगर में मलिन-बस्तियों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण जनसंख्या का उच्च संकेन्द्रण पाया गया है। छोटे-छोटे आवासों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है, परिवार का औसत आकार 6-8 सदस्यों के मध्य प्राप्त हुआ है। यहां पर जनसंख्या का धनत्व उच्च प्राप्त हुआ है। उच्च जनसंख्या के संकेन्द्रण के कारण यहां पर कूड़ा-कचरा अपशिष्ट के ढेर बनते जा रहे हैं, जिनसे विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याऐं उत्पन्न हो रही है। अध्ययन हेतु चयनित मलिन-बस्तियों में जनसंख्या के संकेन्द्रण को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-
उपरोक्त सारणी के अनुसार अध्ययन हेतु चयनित मलिन-बस्तियों
में कुल आवास 11292 हैं, जिनमें 58554 जनसंख्या
निवास करती है। इन चयनित मलिन-बस्तियों में 4741 परिवार
गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। उक्त चयनित मलिन-बस्तियों में सर्वाधिक
आवास 4335 एजाज
नगर बस्ती में हैं, जबकि सबसे कम आवास 268 परसाखेड़ा
बस्ती में हैं। यहां पर सर्वाधिक बी॰पी॰एल॰ परिवार 36.57 प्रतिशत
एजाज नगर में अवस्थित हैं। मलिन-बस्तियों में जनसंख्या का उच्च संकेन्द्रण के कारण
यहां पर कूड़ा-कचरा का उत्सर्जन अधिक होता है। साथ ही साथ कूड़ा-कचरा का उचित
प्रबन्धन न हो पाने के कारण कूड़े के ढेर बन गये हैं, जिनसे जहरीली गैसों का
उत्सर्जन होता है, जो वायु मण्डल में विलीन
होकर वायु की गुणवत्ता को घटा देते हैं, जिससे वायु अस्वस्थकर हो
जाती है, जो मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती
है। पर्यावरणीय प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर
प्रभाव मलिन-बस्तियों में निवास करने वाली जनसंख्या पर पर्यावरण प्रदूषण के निम्न प्रभाव देखने को मिले हैं-
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत
शोध पत्र को पूर्ण करने में प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आंकड़ों का
प्रयोग किया गया है। प्राथमिक आंकड़ों का संग्रह शोधार्थी ने व्यक्तिगत साक्षात्कार
करके प्रश्नावली/अनुसूची के माध्यम से किया है। इसके साथ ही साथ क्षेत्रीय भ्रमण
करके मलिन-बस्तियों की अवस्थिति को ज्ञात किया गया है। द्वितीयक आंकड़ों का संकलन
राजीव गांधी आवास योजना गन्दी बस्ती मुक्त नगर योजना वर्ष 2013 से प्राप्त किये गये हैं। इसके अतिरिक्त
विभिन्न वेबसाइट्स एवं शोध पत्रों से द्वितीयक आंकड़े प्राप्त किये गये हैं। |
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न्यादर्ष |
प्रस्तुत
शोध पत्र को पूर्ण करने हेतु 10 मलिन-बस्तियों का चयन यादृच्छिक विधि द्वारा किया
गया है। इन चयनित 10 मलिन-बस्तियों से 200 सेम्पल एकत्र किये गये हैं। प्रत्येक
मलिन-बस्ती से 20-20 परिवारों का चयन करके कुल 200 परिवारों का सेम्पल सर्वे किया
गया है। |
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निष्कर्ष |
प्रस्तुत
अध्ययन से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि मलिन-बस्तियों की अवस्थिति पर
पर्यावरणीय प्रदूषण का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। नालों के किनारे
अवस्थित मलिन-बस्तियों में जल प्रदूषण का सबसे उच्च स्तर पाया गया है, जिस कारण से यहां निवास करने
वाली जनसंख्या में जल जनित विभिन्न प्रकार की बीमारियां पायी गयी हैं। इतना ही
नहीं आवासों में शीलन एवं नमी के कारण विभिन्न बैक्टिरिया जन्म लेते हैं, जो विभिन्न प्रकार की
बीमारियों को जन्म देते हैं। यातायात एवं परिवहन सुविधाओं के समीप अवस्थित
मलिन-बस्तियों में वायु एवं ध्वनि प्रदूषण का स्तर उच्च पाया गया है, जिस कारण से यहां के
निवासियों में दमा, श्वास, फेफड़ों, एलर्जी, बहरापन, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा इत्यादि बीमारियां जन्म लेती हैं। इसी कारण यहां पर निवास करने वाली
जनसंख्या की जीवन प्रत्याशा निम्न स्तर पर पायी गयी है। इन मलिन-बस्तियों में उच्च
जनसंख्या का संकेन्द्रण पाया गया है। निम्न आय वर्ग के व्यक्तियों के निवास करने
के कारण यहां पर कूड़ा-कचरा का उच्च उत्सर्जन होता है, जिससे यहां पर कूड़े के ढेर
बनते जा रहे हैं। इन कूड़े के ढेरों से विभिन्न प्रकार की जहरीली गैसों के उत्सर्जन
से वायु मण्डल दूषित हो गया है, जिससे विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याऐं उत्पन्न
हो गयी हैं, जिन्होंने मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाला है। |
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भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव | मलिन-बस्तियों में विद्यमान पर्यावरणीय समस्याओं को कम करने हेतु नियमित रूप से मलिन-बस्तियों में साफ-सफाई की जानी अनिवार्य है। स्वच्छता पर विशेष ध्यान देकर कूड़ा-कचरा प्रबन्धन जैसी समस्या को कम किया जा सकता है। मलिन-बस्तियों में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति करके जल-जनित बीमारियों को कम किया जा सकता है। नगर निगम बरेली द्वारा मलिन-बस्तियों में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति की जानी जरूरी है, जिससे मलिन-बस्तियों को पेयजल की आपूर्ति संभव हो सकेगी। मलिन-बस्तियों में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने हेतु सड़कों एवं गलियों में नियमित रूप से पानी का छिड़काव किया जाना चाहिए। इसके साथ ही साथ वृक्षारोपण करके भी वायु प्रदूषण के स्तर को कम किया जा सकता है। मलिन-बस्तियों में भूमिगत जल को दूषित होने से बचाने के लिए नालों की नियमित रूप से साफ-सफाई की जाये। साथ ही साथ बड़े-बड़े नाले एवं नालियों को कंकरीट से बनाकर भूमिगत जल रिसाव की समस्या को कम किया जा सकता है, जिससे दूषित जल भूमिगत जल में मिलने से रूक सकेगा। मलिन-बस्तियों के कच्चे एवं झुग्गी-झोपड़ियों के घरों के स्थान पर पक्के मकानों का निर्माण सरकार द्वारा कराना चाहिए, जिससे पर्यावरण के प्रभाव को कम किया जा सके। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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