P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- IX , ISSUE- VII October  - 2024
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation

बुंदेलखंड की जैव विविधता : संरक्षण और चुनौतीयाँ

Biodiversity of Bundelkhand: Conservation and Challenges
Paper Id :  19369   Submission Date :  2024-10-07   Acceptance Date :  2024-10-21   Publication Date :  2024-10-25
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DOI:10.5281/zenodo.14195250
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रुचि जयसवाल
सहायक प्रोफेसर
प्राणि विज्ञान विभाग
गवर्नमेंट पी जी कॉलेज
चरखारी, महोबा, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैला हुआ बुंदेलखंड अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और विविध पारिस्थितिक तंत्रों के लिए प्रसिद्ध  है। यद्यपि यह क्षेत्र अब जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं का सामना कर रहा है, जिससे इस क्षेत्र की जैव विविधता गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। यह शोध बुंदेलखंड की  वनस्पति और जीव-जंतुओं की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करता है, साथ ही  वनों की कटाई, भूखनन, ग्रामीण क्षेत्र से पलायन औद्योगिकरण एवं बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष प्रभाव की ओर भी ध्यान आकृष्ट करता है। बुंदेलखंड में जीवों की प्रमुख प्रजातियाँ, जैसे बाघ, तेंदुआ, नीलगाय और विभिन्न पक्षीपारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण के कारण संकट में हैं और उनका आवास स्थान भी प्रभावित हो रहा है। साथ ही यह अध्ययन बुंदेलखंड की जैव विविधता संरक्षण  में यहां स्थित विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करने के साथ-साथ गरीबी, अशिक्षा और पारंपरिक प्रथाओं के योगदान का विश्लेषण भी करता है एवं सामुदायिक भागीदारी, सतत कृषि और जल संरक्षण जैसे उपायों की आवश्यकता पर भी जोर देता है। वन संरक्षण, संवर्धन, वृक्षारोपण, पर्यावरण संबंधी विभिन्न कानूनो का सख्ती से पालन  और जन जागरूकता बढ़ाकर बुंदेलखंड की जैव विविधता को पुनः बहाल किया जा सकता है। यह शोध क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं के साथ संतुलन बनाते हुए टिकाऊ विकास के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Bundelkhand, spread over parts of Uttar Pradesh and Madhya Pradesh, is famous for its rich cultural heritage and diverse ecosystems. However, the region is now facing various environmental problems due to climate change, which is seriously affecting the biodiversity of the region. This research analyzes the current status of the flora and fauna of Bundelkhand, and also draws attention to the direct impact on biodiversity due to problems such as deforestation, hunger, migration from rural areas, industrialization and unemployment. Major species of fauna in Bundelkhand, such as tiger, leopard, nilgai and various birds, are in danger due to degradation of the ecosystem. And their habitat is also being affected. Along with this, this study also analyzes the contribution of poverty, illiteracy and traditional practices along with highlighting the important role of various national parks and wildlife sanctuaries located here in the biodiversity conservation of Bundelkhand. And also emphasizes the need for measures such as community participation, sustainable agriculture and water conservation. The biodiversity of Bundelkhand can be restored by forest conservation, promotion, tree plantation, strict adherence to various environmental laws and increasing public awareness. This research provides a framework for sustainable development while balancing the socio-economic needs of the region.
मुख्य शब्द जलवायु परिवर्तन, अवैध खनन और वनों की कटाई, संरक्षण के प्रयास, सूखा और जल संकट, पर्यावरणीय चुनौतियां उत्तर प्रदेश , वनस्पति, बुंदेलखंड, जैव विविधता ।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Climate change, illegal mining and deforestation, conservation efforts, drought and water scarcity, environmental challenges
प्रस्तावना

उत्तरप्रदेश के दक्षिण और मध्य प्रदेश के पूर्वोत्तर में स्थित बुंदेलखंड एक पहाड़ी इलाका है इसके उत्तर में यमुना दक्षिण में विंध्य पर्वतमाला पूर्व में बेतवा और पश्चिम में तमसा नदी स्थित है।बुंदेलखंड राज्य में उ.प्र. के महोबा, झाँसी, बांदा, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर और चित्रकूट जिले शामिल हैं, जबकि म.प्र. के छतरपुर, सागर, पन्ना, टीकमगढ़, दमोह, विदिशा, दतिया, भिंड, सतना आदि जिले शामिल हैं। यह क्षेत्र अपनी समृद्ध संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है कभी जैव विविधता से भरा -पूरा यह क्षेत्र वर्तमान में कई पर्यावरणीय समस्याओं का सामना कर रहा है।

अध्ययन का उद्देश्य

यह शोध प्राइमरी और सेकेंडरी डेटा पर आधारित है। बुंदेलखंड  की बदलती हुई जलवायु जैव विविधता के संरक्षण के प्रयासों का अध्ययन करने के लिए सरकारी रिपोर्टों, अनुसंधान पत्रों, पर्यावरण संस्थानों के डेटा  का उपयोग किया गया है। और क्षेत्रीय सर्वेक्षणों के द्वारा इस क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों की समस्याओं और संभावित समाधान के साथ ही, इस अध्ययन में  जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन  के सामाजिक-आर्थिक कारकों पर पढ़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण किया गया है।

साहित्यावलोकन

बुंदेलखंड की जैव विविधता (Biodiversity of Bundelkhand)

बुंदेलखंड का पारिस्थितिक तंत्र जंगलोंघास के मैदानोंनदियोंऔर झीलों से समृद्ध है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँजैसे सागौनशीशमनीम अश्वगंधा शतावरी सर्पगंधाबबूल, आवला, महुआबेर आदि पाई जाती हैं। वन्य जीवों में बाघतेंदुआनीलगायसांभरचिंकाराऔर विभिन्न प्रकार के पक्षी शामिल हैं। प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्यजैसे पन्ना राष्ट्रीय उद्यानमाधव राष्ट्रीय उद्यानऔर केन-घड़ियालमहोबा में विजय सागर पंछी विहार अभयारण्यक्षेत्र की जैव विविधता के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में 34 स्तनधारी प्रजातियों छोटी बिल्लियों जैसे सियाह गोश (फेलिस काराकल) और जंगली बिल्ली (फेलिस चौस)  लुप्तप्राय प्रजाति काला हिरन (एंटीलोप सर्वाइकाप्रा) भी बीआर क्षेत्र के दक्षिणी भाग में पाया जाता है। इस क्षेत्र में पक्षियों की कुल 281 प्रजातियाँ पाई गई हैं। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में संरक्षित क्षेत्र (यानी पन्ना राष्ट्रीय उद्यानगंगऊ और केन-घड़ियाल अभयारण्य) शामिल हैं। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में तीन अच्छी तरह से परिभाषित क्षेत्रकोर (792.53 किमी2), बफर (989.20 किमी2) और संक्रमण क्षेत्र (1219.25 किमी2शामिल हैं। इन संरक्षित क्षेत्रों में बाघतेंदुआऔर घड़ियाल जैसी संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है।

माधव उद्यान एक विविधतापूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र से समृद्ध हैजिसमें झीलेंवन और घास के मैदान शामिल हैं। वन क्षेत्र में नीलगायचिंकारा और चौसिंगा जैसे मृग और चीतलसांभर और काकर (भौंकने वाला जंगली सुअर हिरण) जैसे हिरण पाए जाते हैं। इसके अलावातेंदुआभेड़ियासियारलोमड़ीजंगली कुत्तासाही और अजगर जैसे जीव भी उद्यान में देखे जाते हैं। यह विविध पारिस्थितिकी तंत्र वन्यजीवों के लिए आदर्श आवास प्रदान करता हैजो जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

महोबा के प्रसिद्ध तालाब और जलाशय जैसे मदन सागरकीरत सागरऔर विजय सागर प्रवासी पक्षियों के ठहरने के प्रमुख स्थल हैं। प्रवासी पक्षियों में प्रमुख रूप से साइबेरियन क्रेन (Siberian Cranes), बार-हेडेड गूज (Bar-headed Goose), नॉर्दर्न शोवेलरकॉमन टीलऔर गर्गनी जैसी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। कुछ अन्य पक्षी जैसे गडवालपिंटेलऔर कॉमन पचार्ड भी महोबा की झीलों में दिखाई देते हैं। किन्तु पारिस्थितिक असंतुलन के कारण इनकी संख्या में कमी आती जा रही है। दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन एवं बढ़ते हुए तापमान के कारण प्रवासी पक्षियों की संख्या में कमी दृष्टिगोचर हो रही है (https://www.jagran.com 28 Feb 2021)

मुख्य पाठ

पर्यावरणीय चुनौतियाँ (Environmental Challenges) विभिन्न पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण बुंदेलखंड की जैव विविधता प्रभावित हो रही है इन चुनौतियों में ग्लोबल वार्मिंग जलवायु परिवर्तन वृक्षों की अंधाधुंध कटाई अवैध खनन नगरीकरण आदि हैं इससे बुंदेलखंड के पारिस्थितिक तंत्र के प्रभावित होने के कारण जैव विविधता प्रभावित हो रही है।

  1. जलवायु परिवर्तन (Climate Change)लगातार बदलते जलवायु पैटर्न के कारण सूखाबाढ़और अत्यधिक गर्मी जैसी समस्याएँ क्षेत्र में आम हो गई हैं। इससे वनस्पतियों और वन्य जीवों के आवास स्थानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
  2. वृक्षों की कटाई (Deforestation)अंधाधुंध वृक्षों की कटाई से वर्षा का पैटर्न  भी प्रभावित हुआ है जिसके कारण बुंदेलखंड के कई क्षेत्र सूखाग्रस्त हो रहे  हैमृदा अपरदन के कारण भूमि की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है तथा जमीन बंजर होती जा रही है इन बंजर भूमियों की प्लॉटिंग करके इन्हें रहवासी कॉलोनी में बदला जा रहा है जिससे जैव विविधता को भारी नुकसान हुआ है। वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं और पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है एवं प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति में भी वृद्धि हो रही है
  3. अवैध खनन (Illegal Mining)बुंदेलखंड में गोरा पत्थर की बहुतायत होने से यहां अवैध खनन की गतिविधियाँ व्यापक रूप से फैली हुई हैंकबरई महोबा गोरहारी इसकी प्रत्यक्ष उदाहरण है जिससे भूमि और जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं क्षेत्र का पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है और जीव-जंतुओं का प्राकृतिक आवास समाप्त हो रहा है।
  4. ग्रामीण पलायन (Rural Migration): पर्यावरणीय समस्याओंप्राकृतिक आपदाओं  बदलते हुऎ जलवायु पैटर्न एवं बेरोजगारी के कारण काफी संख्या में युवा शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं  इससे कृषि और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ गया हैजिससे जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

संरक्षण प्रयास (Conservation Efforts)

बुंदेलखंड में जैव विविधता संरक्षण के लिए शासन स्तर पर और विभिन्न एनजीओ द्वारा  प्रयास किए जा रहे हैं। प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्यजैसे माधव राष्ट्रीय उद्यान,पन्ना राष्ट्रीय उद्यानऔर केन-घड़ियाल अभयारण्यक्षेत्र की जैव विविधता के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन क्षेत्रों में वन्य जीवों की संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा हैऔर स्थानीय समुदायों को संरक्षण की दिशा में जागरूक किया जा रहा है।

न्यादर्ष

समाधान और अनुशंसाएँ :

बुंदेलखंड में प्राकृतिक संसाधन होने के बावजूद संरक्षण की कमी से जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है क्षेत्र का पारिस्थितिक संतुलन और जैव विविधता को संरक्षित करने  के लिए निम्नलिखित समाधान और अनुशंसाएं की जाती है

1. वन संरक्षण और वृक्षारोपण (Forest Conservation and Afforestation): वनों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाना और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए पर्यावरण संबंधी नीतियों और कानून का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए और स्थानीय समुदायों को इस इस कार्य हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए। शासन द्वारा चलाए जा रहे हैं "एक पेड़ मां के नाम" जैसे अभियानों में जनसमुदाय की भागीदारी अनिवार्य रूप से सुनिश्चित की जानी चाहिए।

2. अवैध खनन पर रोक : अवैध खनन से जीव जंतुओं का प्राकृतिक आवास नष्ट होता जा रहा है पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है जिससे उनका पलायन हो रहा है और प्रजातियों की संख्या में गिरावट आई जा रही है। खनन के दौरान हानिकारक रसायन एवं भारी धातुओं का प्रयोग से जल स्त्रोत भी प्रदूषित होने से जल का पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होने से जलीय प्रजातियों की संख्या में भी कमी आती जा रही है खनन गतिविधियों पर सख्ती से नजर रखनी चाहिए और अवैध खनन पर रोक लगाई जानी चाहिए। इसके साथ ही, भू-खनन कानूनों का पालन सुनिश्चित करना चाहिए।

3. पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियाँ (Sustainable Farming Practices): पर्यावरणीय समस्याओं का सामना करने के लिए पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना चाहिए। जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए स्थानीय और पारंपरिक फसलों का समावेश करना फायदेमंद हो सकता है। साथ ही जैविक खाद जैव नियंत्रण सौर ऊर्जा जैसी तकनीकों का कृषि में समावेश से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होगा और जैव विविधता की भी रक्षा की जा सकेगी। सौर ऊर्जा से पेट्रोल डीजल जैसे जीवाश्म इंधनों की खपत कम होगी जिससे कार्बन उत्सर्जन कम होगा । सौर सिंचाई प्रणाली सौर ड्रायर, ग्रीनहाउस हीटिंग और जल शोधन के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग कृषि के लिए एक स्थाई समाधान प्रदान कर सकता है। 

4. जल संरक्षण एवं प्रबंधन : पारंपरिक जल स्रोतों का संरक्षण, कुए, तालाबों का गहरीकरण और सफाई, नदियों की सफाई, वर्षा जल संचयन, प्रत्येक घर में सोक पिट का निर्माण और वर्षा जल अवशोषण के लिए घर के कुछ भाग में कच्ची जमीन का छोड़ा जानाजैसे उपाय जल संरक्षण में बढ़ावा देंगे और इससे भूजल स्तर में भी सुधार होगा जिसका सीधा संबंध पर्यावरण से है इस प्रकार से जैव विविधता संरक्षण में यह उपाय अत्यधिक कारगर साबित होगा।

5. सामुदायिक जागरूकता (Community Awareness): जैव विविधता संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न जन जागरूकता कार्यक्रम एवं  शैक्षणिक अभियान चलाएं जाना अत्यंत अनिवार्य है। पर्यावरण संरक्षण के लिए महाविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजनास्काउट गाइड, रोवर रेंजर जैसे मंचजन जागरूकता कार्यक्रम एवं नुक्कड़ नाटको द्वारा जन जागृति फैलाने के अच्छे माध्यम हैं। 

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन,वृक्षों की कटाई  अवैध खननऔद्योगिकरण, विभिन्न प्रकार की सामाजिक और आर्थिक समस्याएं बुंदेलखंड की जैव विविधता में अनवरत हो रही कमी के मुख्य कारण हैं। इन समस्याओं के कारण यहां का पारिस्थितिक तंत्र अत्यधिक प्रभावित हुआ है इस पर्यावरणीय असंतुलन के कारण वनस्पति और वन्यजीवों की कई प्रजातियां खतरे में है और इससे लोगों की आजीविका भी प्रभावित हो रही है। पलायन के मामले बढ़ते जा रहे हैं। जैव विविधता संरक्षण हेतु स्थापित राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, बायोस्फीयर रिजर्व के साथ-साथ जन समुदाय की भागीदारी  विभिन्न प्रकार के जागरूकता अभियान पर्यावरण संरक्षण संबंधी कानून का कठोरता से लागू किया जाना एवं उनका पालन सुनिश्चित करवाया जाना अत्यंत आवश्यक है। भूखनन पर रोकबेरोजगारी उन्मूलन, वृक्षारोपणवर्षा जल  संरक्षणपारंपरिक जल संसाधनों जैसे कुएं तालाब नहर बावड़ी का संवर्धन सतत कृषि पद्धतियों को पुनर्जीवित करना अत्यंत आवश्यक है ताकि पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर बुंदेलखंड के सतत् विकास का लक्ष्य पाया जा सके।

यह शोध इस बात पर बल देता है कि टिकाऊ विकास की रणनीतियों को अपनाकर तथा सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों में समन्वय स्थापित करके,स्थानीय लोगों को शिक्षित और सशक्त करके बुंदेलखंड की जैव विविधता को पुनः संरक्षित कर सकते है।  

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