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डॉ0 अम्बेडकर की दलितोद्धार सन्दर्भ के परिप्रेक्ष्य मे प्रांसगिकता |
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Relevance in the Context of Dalit Upliftment of Dr. Ambedkar | |||||||
Paper Id :
19460 Submission Date :
2024-11-14 Acceptance Date :
2024-11-23 Publication Date :
2024-11-25
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सारांश |
आधुनिक भारत के निर्माण में कई विचारकों, संतों ने कार्य
किया। इन विचारकों ने राष्ट्र समाज के उत्थान, समाज सुधार,
कुरूतियों,सामाजिक वैमन्यसता के उन्मूलन
में योगदान दिया। इन्ही विचारको में डॉ0 अम्बेडकर का नाम
अग्रणी समाज सुधारक व राष्ट्र निर्माता के रूप में आदरपूर्वक लिया जाता है। डॉ0
अम्बेडकर के जीवन के आदर्श गौतम बुद्ध, कबीर
तथा महात्मा फूले थे। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Many thinkers and saints worked in the creation of modern India. These thinkers contributed to the upliftment of the nation, social reform, eradication of evil practices and social animosity. Among these thinkers, the name of Dr. Ambedkar is taken with respect as a leading social reformer and nation builder. Gautam Buddha, Kabir and Mahatma Phule were the ideals of Dr. Ambedkar's life. | ||||||
मुख्य शब्द | डॉ0 अम्बेडकर, दलितोद्धार, वर्तमान परिप्रेक्ष्य, प्रासंगिकता । | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Dr. Ambedkar, Dalit Upliftment, Current Perspective, Relevance. | ||||||
प्रस्तावना | डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14
अपै्रल 1891 को मध्य प्रदेश के महु नामक
स्थान पर हुआ था। उनका जन्म महार जाति के एक अत्यन्त गरीब परिवार में जन्मे थे।
महार जाति महाराष्ट्र में अछूत समझी जाती है। जन्म के समय उनका नाम भीम सकपाल था।
जिस समय भीमराव अम्बेडकर का जन्म हुआ था, उस समय समाज में
निम्न जाति के लोगों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। उनके जन्म के कुछ समय
पश्चात उनके माता-पिता महाराष्ट्र चले आए। विद्यार्थी जीवन तथा जीवन के प्रारम्भिक
काल में निम्न जाति में उत्पन्न होने के कारण उन्हे अनेक बार अपमान सहना पड़ा, जिसने उनके भविष्य की
रूपरेखा तैयार कर दी। इन घटनाओं से प्रभावित होकर उन्होने अपना जीवन ’दलित वर्ग’ के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। |
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य डॉ0 अम्बेडकर की
दलितोद्धार के परिप्रेक्ष्य मे प्रांसगिकता का अध्ययन करना है । |
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साहित्यावलोकन | डॉ0 वी0पी0 वर्मा के अनुसार ’’इसमें सन्देह नही है, कि वे देशभक्त थे और राष्ट्रीय एकीकरण के विरोधी नही थे। कोई भी उनके इस विचार का विरोध नही कर सकता था, कि अछूतों के लिए हिन्दुत्व द्वारा उन पर लादी गई घोर अपमानजनक स्थितियों को विरोध और उनसे मुक्ति ब्रिटिश शासन से देश राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने की तुलना में अधिक आवश्यक कार्य था।’’ उनके विचारों और कार्यो के आधार पर यह स्पष्ट है कि वे अछूतों तथा दलितो के मसीहा थे। डॉ0 वी0 पी0 वर्मा के अनुसार, ’’उन्होने बौद्व धर्म में मार्क्सवाद का नैतिक तथा सहिष्णु विकल्प खोजा और उनके अनुयायियों ने उन्हे गर्व के साथ ’बीसवी सदी का बोधिसत्व’ कहा!’’ |
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मुख्य पाठ |
डॉ0 अम्बेडकर बचपन से ही बहुत परिश्रमी, संयमी और धर्मनिष्ठ वयक्तित्व के धनी थे। उन्होने वर्ष 1907 में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। कठिन परिश्रम करते हुये वर्ष 1912 में डॉ0 अम्बेड़कर ने बी0ए0 की उपाधि उत्तीर्ण कर ली। इसके पश्चात उन्हे बड़ौदा के महाराजा ने छात्रवृत्ति प्रदान की जिसके सहारे उन्होने उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रयास करने प्रारम्भ किये। वर्ष 1913 मे वे बड़ौदा के महाराजा की छात्रवृत्ति पर ही अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए गये। वहाँ वर्ष 1915 में उन्होने विश्व प्रसिद्व शिक्षण संस्था स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पॉलिटिकल साइन्स में प्रवेश लिया। अगस्त 1917 में वे भारत लौट आए और महाराजा बड़ौदा के ’सैनिक सचिव’ के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। बड़ौदा राज्य में उच्च पद पर होने के बावजूद भी उनके साथ अच्छा व्यवहार नही होता था। वर्ष 1920 में वे पुनः अध्ययन के लिए लन्दन चले गए और वर्ष 1924 में उन्होने मास्टर ऑफ साइन्स की उपाधि प्राप्त की। अपने शोध प्रबन्ध पर उन्होने लन्दन विश्वविद्यालय से पी0 एच0 डी0 की उपाधि प्राप्त की। इसके साथ ही उन्होने बार एट लॉ की उपाधि भी प्राप्त की। वर्ष 1923 में डॉ0 अम्बेडकर भारत लौट आए और ’बहिष्कृत भारत’ नामक मराठी पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। डॉ0 अम्बेडकर विभिन्न भाषाओं के प्रकान्ड विद्वान थे उनकी विद्वता देखते हुये वर्ष 1927 में ही उन्हे बम्बई विधान परिषद का सदस्य चुना गया। बम्बई विधान परिषद में उन्होने दलित समाज की स्थिति का बहुत मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया। सामाजिक अछूतोद्धार कार्यक्रम के अन्तर्गत उन्होने ’बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की। दलित शोषित वर्ग के उत्थान के लिये डॉ अम्बेडकर ने अगस्त 1936 में इण्डिपेण्डेण्ट लेबर पार्टी की स्थापना की। अगस्त 1942 में उन्हे गवर्नर जनरल की परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। वर्ष 1947 में उन्हे संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। वर्ष 1949 में उन्हे स्वतन्त्र भारत का प्रथम ’विधि मन्त्री’ बनाया गया किन्तु मन्त्री पद पर जातीय असहजता महसूस करते हुए उन्होने मंत्री पद से त्याग-पत्र दे दिया। वर्ष 1955 में उन्होने ’भारतीय वृद्व महासभा’ की स्थापना की और 14 अक्टूबर 1956 को उन्होने 'बौद्ध धर्म' स्वीकार कर लिया। जीवन के अंतिम समय में 16 दिसम्बर 1956 को दलितोद्धार कार्य करते हुये उन्होने इस संसार से मोक्ष प्राप्त किया। डॉ0 अम्बेडकर के दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के कार्य डॉ0 अम्बेडकर का जीवन भारत के सामाजिक सुधारो के लिए समर्पित था। उन्होने जातिवाद और अस्पृश्यता के निवारण के लिए जीवनभर कार्य किया। डा0 अम्बेडकर को हिन्दुओं के व्यवहार और ब्रिटिश शासन की नीति से यह पूर्ण ज्ञान हो गया था कि ये सभी अछूतों के प्रति उदासीन हैॅ। समाज मंे अछूत सभी प्रकार से कमजोर है, और वे सामाजिक राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों से सवर्णों की समानता करने में असमर्थ है। अछूतो के उद्धार एवं उत्थान के लिए उन्होने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनके कार्यो से ही उन्हे ’दलितो का मसीहा’ कहा जाता है। डॉ0 अम्बेडकर ने हिन्दू सामाजिक व्यवस्था का विश्लेषण किया तथा यह कहकर आलोचना की कि यह व्यवस्था असमानता पर आधारित है। जाति, वर्ग, कुल तथा वंश के आधार पर बने पिरामिड की सभी व्यवस्थाओं के शीर्ष पर एक वर्ग अपना आधिपत्य तथा वर्चस्व स्थापित किए हुए है। इस कारण अन्य वर्ग अपने सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अधिकारों से वंचित है। यही पिरामिडय संरचना शोषित वंचित वर्ग के शोषण का मुख्य कारण है। इस प्रवृत्ति के कारण हिन्दू समाज का निरन्तर विघटन हो रहा है। जिस कारण राष्ट्र में आपसी द्वेष तथा तनाव के संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो रही है, जो राष्ट्रीय के लिए एक गम्भीर खतरा उत्पन्न कर रही है। अतः डॉ0 अम्बेडकर ने इस दिशा में चिन्तन किया तथा जातिगत भेदभाव को समाप्त करके राष्ट्रीय एकीकरण की दिशा में महान कार्य किया। दलितोद्धार के सम्बन्ध में डॉ0 अम्बेडकर के विचारो और कार्यों की संक्षिप्त विवेचना करते है, तो ज्ञात होता है कि उन्होने राष्ट्रहित एवं समाज सुधार के विभिन्न क्षेत्रो में अतुलनीय कार्य किये जैसे - वर्ण व्यवस्था की आलोचना कर शुद्रो के लिये उचित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था करना डॉ0 अम्बेडकर चर्तुवर्णीय व्यवस्था के प्रबल आलोचक थे। भारतीय हिन्दू व्यवस्था का संगठन चार वर्णों पर आधारित है। ये चार वर्ण है- ब्राह्नण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र विभाजित है। इस वर्ण व्यवस्था में शूद्रों के हितो की रक्षा की कोई व्यवस्था नही है। शूद्र शिक्षा व ज्ञान प्राप्त करने से वंचित थे तथा उन्हे आत्मरक्षा का भी अधिकार नही था। हिन्दुओं की परम्परागत व्यवस्था मनुस्मृति पर आधारित संचालित है। डॉ अम्बेडकर ’मनुस्मृति’ को अन्याय असमानता तथा शोषण का प्रतीक मानते थे। उनमें हिन्दुओे की परम्परागत व्यवस्था के विरूद्ध गहरा आक्रोश था। उनके नेतृत्व में अनेक बार ’मनुस्मृति’ को जलाने का कार्य किया गया। उनका विचार था कि मनुस्मृति ने अछूतों का सामाजिक , आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक शोषण करके उन्हे दासता प्रदान की है। जातीय व्यवस्था मे क्रान्तिकारी बदलाव की पहल करना डॉ0 अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था की आलोचना की, और उसका विरोध किया है। डॉ अम्बेडकर का मत था कि चार वर्णो पर आधारित सामाजिक ढाँचे की हिन्दू योजना ने ही जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता को जन्म दिया है। इस जाति व्यवस्था के कारण असमानता और शोषण व्याप्त है। उनका विचार था कि अस्पृश्यों की समस्याओं का समाधान छोटे-छोटे सुधारो से नही है। इसके लिए क्रान्तिकारी सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है। उनका विचार था कि प्रारम्भ में जाति व्यवस्था नही थी। कालान्तर में समाज के कुछ स्वार्थी लोगों ने जो उच्च स्तर के थे, इस प्रथा को प्रारम्भ किया। समाज के कुछ स्वार्थी लोगों ने कुछ कमजोर लोगों से बलपूर्वक कार्य कराकर उन्हे अपनी दास्ता में रखा और उन्हे शिक्षा प्राप्त करने व व्यापार से वंचित कर दिया। इस प्रकार जातिवाद को अपनाकर शूद्रों को निर्बल कर दिया गया। उनके अनुसार जाति व्यवस्था हिन्दू समाज का सबसे बड़ा दोष था। वे जाति व्यवस्था को समूल नष्ट करना चाहते थे। इस व्यवस्था में उन्होने क्रान्तिकारी बदलाव कर शुद्रो को सुरक्षा प्रदान करने का कार्य किया। दलितो के लिए पृथक प्रतिनिधित्व की वयवस्था पर बल देना डॉ अम्बेडकर दलितों तथा अछूतों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व के समर्थक थे। उनका विचार था कि मुसलमानों की भाँति अछूतों को भी पृथक प्रतिनिधित्व दिया जाए। उन्होने प्रथम तथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में अछूतों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व पर ही सबसे अधिक बल दिया। उन्होनेकहा था कि ’’अब हमारा विश्वास न गाँधी पर है और न ही कांग्रेस पर, यदि हमारा विश्वास किसी बात पर है, तो वह है अपना उद्धार करने पर।’’ अछूतो को सभी सार्वजनिक स्थानों के प्रयोग के अधिकार की मांग करना डॉ अम्बेडकर का मत था कि सभी सार्वजतिक स्थान मन्दिर क कुएँ और तालाब आदि सभी मनुष्य के लिए सुलभ होने चाहिए और अछूतो को इससे वंचित करना न्यायोचित नही है। वर्ष 1930 में उन्होने गुजरात में कालाराम मन्दिर में प्रवेश के लिए एक प्रदर्शन का नेतृत्व किया। उन्होने महार वमन कानून का विरोध किया, जो महाराष्ट्र के महारों के लिए बँधुआ मजदूरी और दासता की व्यवस्था करता था। उन्होने ’समता सैनिक दल’ की भी स्थापना की। अछूतो के उद्धार के लिए कानूनी उपाय की व्यवस्था मनुस्मृति तथा अन्य स्मृतियाँ उस समय कानून थी। उनका मत था कि कानून द्वारा उनमें परिवर्तन करके सामाजिक समानता स्थापित की जानी चाहिए। अतः उन्होने कानून द्वारा मनुस्मृति को नया रूप दिया तथा ऊँच-नीच के भेदभावपूर्ण कानूनो को रद्द कर दिया। संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक समानता की थी व्यवस्था की गई है और अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता को कानून की दृष्टि में अपराध घोषित करने की व्यवस्था की गई है। भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को आरक्षण दिया गया है। डॉ अम्बेडकर और धर्म परिवर्तन डॉ0 अम्बेडकर चाहते थे कि अछूत वर्ग भी सम्मानपूर्ण ढंग से जीवन बितायें। हिन्दू धर्म में असमानता तथा ऊँच-नीच की भावना व्याप्त थी। अतः सम्मानपूर्ण और समानता के लिए उन्होने अछूतो के लिए धर्म परिवर्तन का निश्चय किया। बौद्व धर्म में उन्होने समानता का सन्देश पाया। अतः उन्होने अपने वर्ग के लिए बौद्व धर्म स्वीकार करने का संकल्प किया। वर्ष 1956 मंे उन्होने 5 लाख व्यक्तियों के साथ बौद्व धर्म स्वीकार कर लिया। इस धर्म परिवर्तन का उद्देश्य अछूत वर्ग को अपनी अलग पहचान बनाकर सम्पूर्ण स्थिति प्रदान करना था। डॉ0 वी0 पी0 वर्मा के अनुसार, ’’ उन्होने बौद्व धर्म में मार्क्सवाद का नैतिक तथा सहिष्णु विकल्प खोजा और उनके अनुयायियों ने उन्हे गर्व के साथ ’बीसवी सदी का बोधिसत्व ’ कहा !’’ श्रमिकों के हितो का समर्थन करना उन्होने श्रमिकों के दिनो को भी महत्वपूर्ण समझा और उन्हे मिल मालिको के शोषण से बचाने का प्रयास किया। उन्होने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए श्रमिको का एक स्वतन्त्र दल बनाया। डॉ अम्बेडकर के उपरोक्त विचारांे से स्पष्ट होता है, कि वे अछूत तथा दलितो के लिए समर्पित सामाजिक और राजनीतिक विचारक थे। उनका उद्देश्य अछूतो, दलितो तथा श्रमिको का उत्थान करना था। तथा वे सामाजिक भेद-भाव मिटाकर समानता स्थापित करना चाहते थे। संविधान में धर्मनिरपेक्ष राज्य की व्यवस्था करना व वंचित वर्ग की सुरक्षा की के लिये अस्पृश्यता अपराध अधिनियम बनाना उन्ही की देन है। वे प्रबल देशभक्त तथा राष्ट्र की एकता के प्रबल समर्थक थे। वे प्रारम्भ से ही राजनीतिक स्वतन्त्रता के भी समर्थक रहे हैं, परन्तु उनके जीवन का मुख्य लक्ष्य अछूतों के लिए सम्मानपूर्ण जीवन की परिस्थितियाँ उत्पन्न करना था, तथा समाज को समानता के आधार पर भेदभाव तथा शोषण से बचाना था। वस्तुतः वे राजनीतिक स्वतन्त्रता की अपेक्षा पहले सुधार चाहते थे। इसलिए कहा जाता है कि’’डॉ अम्बेडकर एक समाज सुधारक थे न कि एक राजनीतिज्ञ’’। डॉ0 अम्बेडकर की प्रमुख कृतियाँ
वर्तमान संदर्भ में डॉ0 अम्बेडकर की प्रासंगिकता हमारे देश में कुछ ऐसे महापुरूष और मार्गदर्शक पैदा हुए है, जो अपने समय से आगे की सोच रखते थे। महानायक भीमराव अम्बेडकर भी ऐसे ही दूरदर्शी मनीषियो मे से थे। वर्तमान समय में डॉ0 अम्बेडकर की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। उन्होने सफलता के तीन मंत्र दिए थे- ’शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो।’ हाल ही में हमे किसान आन्दोलन में संगठन और संघर्ष की शक्ति दिखी। उनके एक साल का संगठित संघर्ष रंग लाया और सरकार को तीनो काले कानून वापस लेने पड़े। कहने का मतलब यह है कि आज किसानो को जो सफलता मिली, उसके पीछे की ताकत बाबा साहेब अम्बेडकर की विचारधारा और संविधान ही है। संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ0 अम्बेडकर ने सही अर्थों में लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना संविधान के माध्यम से की इसलिए हमारा संविधान हमारे लोकतन्त्र का रक्षक पर आज जैसे हालात पैदा हो रहे है, ऐसे में डॉ अम्बेडकर की विचारधारा और अधिक प्रबल हो जाती है। आज हमारी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला हो रहा है। हम एक अघोषित इमरजेंसी जैसे दौर से गुजर रहे है। संवैधानिक मूल्यो का हनन हो रहा है। धर्मनिरपेक्ष देश में ’’हिन्दू राष्ट्र को बढ़ावा दिया जा रहा है। लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करने वालो को देशद्रोही करार दे दिया जाता है। साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। जातिगत भेदभाव और अत्याचार की घटनाएं बढ रही हैं, ऐसे में बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर की मानवतावादी विचारधारा और भी जरूरी हो जाती है। बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर लोकतान्त्रिक आन्दोलनकर्मी के रूप में जाने जाते है। दलितो की मुक्ति के पर्याय के रूप में देश के कोने-कोने में मौजूद है। उन्होने भारतीय समाज में दलित वंचित एव महिलाओं के लिए एक वैकल्पिक समाज की स्थापना का बीजारोपण किया।उनके व्यक्तित्व में एक अर्थशास्त्री, राजनेता, दार्शनिक, शिक्षाविद, कानूनविद् होने व संविधान निर्माता के साथ-साथ सक्रिय आन्दोलनकर्मी के भी गुण नजर आते है। उन्होने भारतीय समाज में जड़े जमाए शोषणकारी जाति व्यवस्था का ऐतिहासिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। ज्ञान और दलित मुक्ति का स्वप्न डॉ0 अम्बेडकर दलित एवं वंचित समुदाय में ज्ञान की ज्योति जलाना चाहते थे। वे मानते थे,कि शिक्षा से ज्ञान आता है, जागरूकता आती है और उसी से शोषण और छुआछूत से मुक्ति मिल सकती है। बाबा साहब ने अपने तीन गुरू माने थे- 1. गौतम बुद्व 2. कबीर 3. महात्मा ज्योतिबा फूले। इनको गुरू मानने की कसौटी भी स्पष्ट है- गौतम बुद्व ने पहली बार दलित वंचित और स्त्रियों के लिए शिक्षा की शुरूआत की। ब्राहृणो के शैक्षणिक संस्थान गुरूकुल पद्वति के समानान्तर बौद्ध विहार (शिक्षण संस्थान) की नींव डाली। कबीर ने ज्ञान पर अधिक बल दिया और समाज में फैले अंधविश्वास और पांखडो के प्रतिकार के द्वारा ब्राह्नाणवाद का तीव्र विरोध किया। महात्मा ज्योतिबा फूले ने भी दलितो और महिलाओं की शिक्षा पर बल दिया और महिलाओ के लिए अलग से स्कूल खोले। महान विचारक बुद्ध, कबीर, ज्योतिबा फूले तीनो विद्वानो ने अपने-अपने समय में जाति-व्यस्था की जड़ों पर प्रहार किया। इसलिए बाबा साहब ने इन्हे अपना अग्रणी माना। गांव दलितो के शोषण के कारखाने डॉ0 अम्बेडकर का मानना था, कि भारत के गाँव दलितो के शोषण के कारखाने है। गाँवों में दलितो के साथ सबसे ज्यादा भेदभाव, अन्याय, और दमन होता है। इसलिए उन्होने दलितो को गाँव से बाहर निकल कर शहरों की तरफ जाने की सलाह दी। उन्होने देखा कि गाँव में दलित ही मरे जानवर उठाते है, मल मूत्र उठाते है। उन्हे मन्दिरों में जाने नही दिया जाता। स्कूलों में शिक्षक पढ़ाई के बजाय दलित बच्चों से सफाई का काम कराते ह,ै जबकि शहरों मे ऐसा नही होता है। शहरों में कोई भी जबरदस्ती पुश्तैनी (पारंपरिक) काम धंधों से नही बंधा होता। वह अन्य कार्य कर सकता है। इसलिए उन्होने मरे जानवर उठाना, मलमूत्र ढोना इत्यादि पुश्तैनी काम धधों को छोड़ने की बात की। डॉ0 अम्बेडकर के महत्वपूर्ण कार्य वर्ष 1923 में उन्होने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य था वंचित समुदाय के लिए शिक्षा और आर्थिक सुधार। इसलिए उन्होने वंचित समुदाय से विभिन्न संस्थानो को अपने हाथों मे लेने पर जोर दिया। उन्होने लोगो को अपने मानवीय अधिकारो के प्रति जागरूक करने के लिए समय-समय पर ’मूकनायक जनता’, ’बहिष्कृत भारत’ जैसे समाचार-पत्रो का सम्पादन तथा प्रकाशन किया। वर्ष 1927-28 में उन्होने सीधे दलितो के लिए आन्दोलन के नेतृत्व की शुरूआत की जिसे महाड़ आन्दोलन या महाड़ सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। महाड़ में चवदार तालाब पर दलितों को पानी लेने की मनाही थी। सरकार द्वारा एक कानून बनाकर उस तालाब से दलितों के पानी लेने के अधिकार को संरक्षित किया गया था। किन्तु कानून बनाने के बावजूद उच्च जाति के लोग चावदार तालाब से दलितो को पानी नही लेने देते थे। बाबा साहब डॉ0 अम्बेडकर ने संघर्ष कर उन्हे यह अधिकार दिलाया। इसी समय में डॉ0 अम्बेडकर ने अन्य सार्वजनिक स्थानो में दलितों के प्रवेश के लिए भी लड़ाई लड़ी। उन्होने देश के आर्थिक विकास में भी महत्वूपर्ण भूमिका निभाई परिणाम, आज का रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी उन्ही के विचारों पर आधारित है। महिलाओं के विकास पर बल बाबा साहेब डॉ0 अम्बेडकर ने महिलाओं के विकास पर विशेष जो दिया। उन्होने कहा कि यदि किसी समाज की प्रगति देखनी हो तो यह देखो कि उस समाज की महिलाओ ने कितनी प्रगति की है। वे समाज के विकास का पैमाना महिलाओ के विकास को मानते थे। उनका मानना था, कि यदि एक पुरूष शिक्षित होता है तो सिर्फ एक व्यक्ति शिक्षित होता है, किन्तु यदि एक महिला शिक्षित होती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता है। उन्होने महिलाओ के अधिकारों के लिए हिन्दू कोड बिल को संसद मंे पास कराने का प्रयास किया । इस प्रकार हम देखते है, कि उन्होने उस समय महिला सशक्तिकरण की आवाज उठाई जब महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाला कोई नही था। इस प्रकार डॉ0 अम्बेडकर ने महिलाओं और दलितो की आजादी, समानता, न्याय और सम्मान के अधिकारों की बात की, उनके लिए आजीवन संघर्ष किया एवं उनके सुन्दर भविष्य के लिये आन्दोलन किए। इसलिए वे दुनिया में इस सदी के महानायक के रूप में जाने जाते है। |
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निष्कर्ष |
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो आज चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल साम दाम, दंड, भेद सब अपनाते हैं और अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए सम्प्रदायिकता और जाति का कार्ड खेलते है। ऐसे कठिन समय में डॉ0 अम्बेडकर के विचार नितांत आवश्यक हो जाते है। क्योंकि डॉ0 अम्बेडकर समता, समानता, स्वतन्त्रता, न्याय और बंधुत्व की विचारधारा को समाज में स्थापित करना चाहते थे। जो लोकतन्त्र और मानवता के आधार स्तम्भ है, एवं मानवीय मूल्यों की बुनियाद है। अतः उर्पयुक्त तथ्यों के आधार कहा जा सकता है, कि डॉ0 अम्बेडकर के विचारों के साथ उनकी प्रासंगिकता हमेशा शास्वत बनी रहेगी। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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