तुम कितने दिन बाद मिले हो सोचो सोचो कैसे हैं।
      09 November 2022

प्रतिमा दीक्षित, कानपुर
तुम कितने दिन बाद मिले हो सोचो सोचो कैसे हैं।
बिन तेरे मधुमास बिताया
पर बिन पंक्षी जैसे है

शब्दो शब्दो तुमको चाहा हर दर्पण में देखा है
हाथो को गौर से देखा मिलन के अपनी रेखा है
अब तक तो उम्मीद में थे अब कैसे न तड़पु जी
इन्तजार की हद में हम जल बिन मछली जैसे है

सूरज की हर तपिश में तपकर और निखरती हुं
रातों में चंदा के संग संग छुप के खूब सवारती हू
दिन के आठ पहर भी तो तब आठ मास लगाते थे
बिन ठहरे जो उड़ती जाए, हम उस बदली जैसे है

माली ने बगिए के तो सारे फूल ही चुन डाले
कान्हा के अर्पण को मालाओं में बुन डालें
किस्मत का रोना था की नियति का भोलापन
कान्हा का श्रंगार न पाए उस मंजरी के जैसे है

दो पल के उस वक्त ने हमको खूब रुलाया है
तेरे मिलने के खातिर पैरों ने खूब चलाया है
भूल गई थी हर ख्वाहिश हर सपना बस तुमतक था
किस्मत थी फूटी रिश्ते कि,या हम फूटी किस्मत जैसे है
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