डाॅ. किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा" नोयडा |
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बहुत याद आती हैं ,बहुत याद आती हैं, बचपन की बातें,
वो तारों की छाँव, वो जुगुनू की रातें, बहुत याद आती हैं।
वो गर्मी की छुट्टी में गाँवों को जाना, वो पीपल वो बरगद कुएं पर नहाना,
वो इमली वो कैथा, वो चूरन चुराना,
वो लड़ना, झगड़ना, वो मुँह को फुलाना, वो कट्टी वो अब्बा और फिर माना जाना,
बहुत याद आती हैं.... वो बचपन की बातें, वो तारों की छाँव वो जुगनू की रातें।बहुत याद आती हैं...
वो छप्पर मडैंया, वो कद्दू की बेलें,वो गलियाँ वो आंगन जहाँ हम थे खेले,
वो गिल्ली वो डंडा,वो छू छू के खेलें, वो कपड़ो की बाॅलें, वो कंचों की गोली,
वो गुड्डों की शादी वो गुड़ियाँ की डोली,
बहुत याद आती है, बहुत याद आती है, वो बचपन की बातें, वो पीपल की छाँव ,वो जुगुनू की रातें, बहुत याद आती हैं, ......
वो फूलों की बस्ती में तितली पकड़ना, मचानों पर चढ़कर वो चिड़िया उड़ाना, वो कौव्वा, कबूतर मुंडेरों बुलाना,
वो उंगली पे गिनना पहाड़ों की रातें, जो बनती अलारम वो मुर्गो की बाँगें, सुनाती वो दादी परी की कहानी ....
बहुत याद आती हैं..
बहुत याद आती हैंवो बचपन की बातें, वो तारों की छाँव, वो जुगनू की रातें... बहुत याद आती हैं....
वो भरी दुपहरी में बागों को जाना वो आमों के थैले,वो जामुन को खाना, वहीं एक बुढ़िया का था जो ठिकाना, वो बुढ़िया को भूतों की नानी बुलाना, चिढ़ाकर उसे फिर घर भाग जाना...
वो दिन थे रुपहले और शामें सुहानी..
बहुत याद आती है.बहुत याद आती है, बचपन की बातें.. वो तारों की छाँव वो जुगनू की रातें...
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