महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न
      01 December 2022

अर्पित बाजपाई संवादाता
स्वैच्छिक दुनिया [ ब्यूरो ] , उज्जैन मध्यप्रदेश | आयोजित सम्मेलन-संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र 26 नवंबर 2022 को प्रातः 8 बजे अनुराग जैन के मंगलाचरण के साथ प्रारंभ हुआ। दीप प्रज्ज्वलन उज्जैन की जेल अधीक्षक डॉक्टर उषा राजे ने किया। अध्यक्षता डॉक्टर नरेश पाठक सेवानिवृत्त पुरातत्त्व सर्वेक्षक मध्यप्रदेश ने की। इस सत्र के प्रमुख वक्ता डॉ नलिन के शास्त्री ने विषय प्रवर्तन एवं ‘जैन साहित्य इतिहास में उज्जैन’ विषय पर अपने शोध आलेख का वाचन किया। इस सत्र में आचार्य श्री प्रज्ञा सागर जी महाराज का सान्निध्य व आशीष तो मिला ही, संयोग रहा कि इंदौर से विहार करते हुए आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रमुख शिष्या आर्यिका पूर्णमति माताजी अपनी नौ पिच्छीधारी तपस्विनियों के संघ के साथ यहां पहुंचीं और संगोष्ठी में आपना सान्निध्य ही नहीं, बल्कि उन्होंने अपना उद्बोधन भी दिया और जैन इतिहास पर प्रकाश डाला।

आचार्य श्री प्रज्ञासागर जी मुनिराज ने अपने आशीर्वचन में इतिहास पर प्रकाश डाला। आचार्य श्री ने कहा इतिहास है तो हम हैं, इतिहास के बिना सब शून्य है। आज का वर्तमान ही भविष्य में इतिहास बन जाता है। हमें अपने वास्तविक इतिहास को संजोना चाहिए। उन्होंने कहा-
एक दिन भी जी मगर तूं ताज बनकर जी। कल न बन तूं जिंदगी का आज बनकर जी। सत्र का कुशन संचालन संगोष्ठी की संयोजिका डॉक्टर नीलम जैन पुणे ने किया। संगोष्ठी का द्वितीय सत्र दोपहर 2 बजे प्रारंभ हुआ। इस सत्र का मंगलाचरण आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी की संघस्थ ब्रह्मचारिणी रितु दीदी ने किया, दीप प्रज्ज्वलन मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ मोहन यादव ने किया, अध्यक्षता डॉ रमेश यादव पुरातत्त्व अधिकारी भोपाल ने की। इस सत्र के प्रमुख वक्ता थे- श्री भूपेंद्र सिंह जोधा- शोध अधिकारी- स्वराज शोध संस्थान, भोपाल। इनका विषय था ‘उज्जैन में प्राप्त जैन पुरातत्त्व सामग्री’। दूसरे शोधपत्र वाचक थे डॉक्टर नवनीत जैन, इनका विषय था ‘उज्जैन के चंद्रप्रभु मंदिर की प्राचीन प्रतिमाएं एवं उनकी प्रशस्तियां’ तीसरे प्रवक्ता थे डॉ नरेश पाठक, पुरातत्त्वविद, ग्वालियर। सत्र के अंत में अध्यक्षीय भाषण हुआ। डॉक्टर नीलम जैन पुणे संचालन किया। तदुपरांत आचार्य श्री प्रज्ञासागर जी महाराज जी ने उद्बोधन दिया। आचार्य श्री ने कहा यदि हम आचार्यगण एक मंच पर आजायें, देश में 16 सौ दिगम्बर मुनि महाराज हैं, यदि ये सब एक हो जाएँ तो समाज स्वतः ही एक हो जाएगा। जहां पंथवाद है, संतवाद है, ग्रंथवाद है वहां समाज में विभेद है, दुराव है, आपस में वैमनस्यता है। यदि संतवाद, पंथवाद, ग्रंथवाद खत्म हो जाये, सभी संत एक हो जायें तो समाज स्वता एक हो जाएगी। आज उनके गुरु, हमारे गुरु, तुम्हारे गुरु, सबका अलग-अलग मत चल रहा है। हमें सभी गुरुओं को एक दृष्टि से देखना चाहिए, तभी समाज में समरसता आ सकती है। तृतीय सत्र 27 नवंबर 2022 को प्रातः 8 बजे प्रारंभ हुआ। प्रारंभ में दीप प्रज्ज्वलन डॉक्टर यतीन्द्र सिंह सिसोदिया, विशिष्ट अतिथि थे श्री आदेश जैन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और श्री अरविंद जैन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट। सत्र की अध्यक्षता डॉ. एस. के. जैन ने की। इस सत्र के प्रथम वक्ता- डॉ महेंद्र कुमार जैन ‘मनुज’ इंदौर ने ‘उज्जैन संग्रहालय में संग्रहीत चार एकल शासन देवियां’ वषय पर अपने शोधपत्र का वाचन किया, द्वितीय वक्ता थे श्री यतीश जैन, जबलपुर, शोधाधिकारी भारतीय पुरातत्त्व संरक्षण संस्था। तीसरे वक्ता थे डॉ नरेश सिंह पवार, रतलाम। इनका विषय था ‘परमार वंश के राजाओं के राज्य काल में जैन धर्म’। मुख्य अतिथि के रूप में बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस. के. जैन ने जैन पुरातत्त्व पर अपने चिार रखे। सत्र का कुशल संचालन डॉक्टर नीलम जैन पुणे ने किया। संगोष्ठी का चतुर्थ सत्र 27 नवंबर को दोपहर 2 बजे प्रारंभ हुआ। इस सत्र के मंगलाचरण के उपरांत दीप प्रज्ज्वलन उज्जैन नगर निगम की अध्यक्ष डॉक्टर कलावती यादव ने किया। अध्यक्षता डॉ अनुपम जैन अंबेडकर भारतीय विज्ञान विभाग अहिल्यादेवी होलकर विश्वविद्यालय इंदौर ने की। मुख्य वक्ता डॉ रमन सोलंकी, उज्जैन, पुरातत्त्व विभागाध्यक्ष उज्जैन विश्वविद्यालय थे। डॉ रमन सोलंकी ने जैन पुरातन प्रतिमाओं पर प्रकाश डाला। आपने कहा सर्वेक्षण अभी हुआ नहीं है। ईमानदारी से सर्वेक्षण होना चाहिए। कहीं-कहीं जैन प्रतिमाओं पर कपड़े पहना करके कभी कोई देवी, कभी उस पर सिंदूर लगा कर के अन्य मतावलंबियों द्वारा पूजा जा रहा है। उसका कायदे से कपड़े निकाल करके, और सही सर्वेक्षण होना चाहिए। आपने कहा विश्वविद्यालय में जैन गैलरी, महावीर गैलरी इस नाम से भी बनाई जा सकती है, वे उसका पूरा सहयोग करेंगे। सत्र के अंत में सभी का धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नीलम जैन, पुणे द्वारा किया गया। आचार्य श्री प्रज्ञासागर जी ने आगत विद्वानों एवं समाजजनों को संबोधित करते हुए दो महत्वपूर्ण घोषणाएं की- आचार्य श्री ने कहा की आज मुनिमहाराजों के, आचार्यों के, विद्वानों के इन सबके अभिनंदन ग्रंथ बनते हैं, क्यों न एक ऐसा ग्रंथ बनाया जाए जो उज्जैन का अभिनंदन ग्रंथ और उज्जैन का स्वर्णिम इतिहास, बहुमुखी इतिहास इसमें समाहित किया जाए। वह चाहे एक हजार पृष्ठ का हो जाए। उन्होंने कहा संस्थाएं आगे आ करके उसको छपवाएं तो अच्छी बात है, अन्यथा वे ‘महावीर तपोस्थली ट्रस्ट की ओर से उस ग्रंथ के लिए अभी आठ लाख रुपये की घोषणा करते हैं। दूसरी एक घोषणा और की। आचार्य श्री ने कहा पुरातत्त्व पर बहुत काम करने वाले लोग हैं, लेकिन उनको उत्साहित भी किया जाना चाहिए। उसके लिए आचार्य श्री प्रज्ञासागर जी महाराज ने कहा कि वे एक पुरस्कार की घोषणा करना चाहेंगे, जो किसी एक उत्कृष्ट कार्य करने वाले पुरातत्त्वविद को प्रतिवर्ष दिया जाएगा, उसकी राशि और उसका नाम कुछ लोग बैठ करके तय कर लेंगे और अगले वर्ष से वह पुरस्कार प्रतिवर्ष प्रदान किया जाएगा। आचार्य श्री ने कहा कि पुरातत्त्व व इतिहास पर यह संगोष्ठियों की शुरुआत हुई है, श्रीगणेश हुआ है, आगे प्रतिवर्ष निश्चित ही पुरातत्त्व व इतिहास पर संगोष्ठी आयोजित की जाएगी। अभी इस बार केवल 15 दिन का समय दिया गया था विद्वानों को तैयारी करने के लिए, आगे से कम से कम 2 महीने का समय दिया जाएगा, जिससे पूर्ण तैयारी करके सम्मेलन में, संगोष्ठी में विद्वान् पधारेंगे।
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