संवाददाता अर्पित बाजपई |
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स्वैच्छिक दुनिया ब्यूरो, भोपाल, 17 दिसम्बर। स्पिक मैके भोपाल चैप्टर द्वारा बंगाल के कलाकारों द्वारा आई ई एस यूनिवर्सिटी और जवाहर नवोदय विद्यालय में पुरुलिया छाऊ नृत्य की प्रस्तुति दी गई। छाऊ दरअसल पूर्वी भारत की अर्धशास्त्रीय नृत्य विधा है जिसका उद्भव जनजातीय और लोक है।
छाऊ नृत्य तेज़ गति और ऊर्जा से लबरेज़ होता है जिसमे धार्मिक और पौराणिक विषयवस्तु पर संरचित नृत्य प्रस्तुतियाँ की जाती हैं। आज की नृत्य प्रस्तृति में 16 कलाकारों ने अपनी गति, सामंजस्य और नृत्य से समां बांधा। पुरुलिया छाऊ पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले का पारंपरिक नृत्य है। पुरुलिया छाऊ का गढ़ कहा जाता है। इस नृत्य में कलाकारों ने मोतियों से सज्जित मिट्टी के मुकुट और आकर्षक परिधान को पहनकार नृत्य किया जिसे गणेश छाऊ डांस पार्टी, ग्राम शीतलपुर ज़िला पुरुलिया, पश्चिम बंगाल के कलाकारों ने पेश किया। सभी कलाकार महतो समुदाय के थे जिनकी कई पीढ़ियाँ क़रीब सौ साल से छाऊ करती आरही हैं। 5-7 किलो के मुखौटे और 9 किलो भारी ड्रेस। नृत्य की ख़ासियत रही कि यह 5 से 6 किलो के मुखौटे और 9 किलो वजनी ड्रेस में परफ़ार्म करते नज़र आए जिसे शीतलपुर गांव के कारीगरों ने ही तैयार किया। प्रस्तुत नृत्य की थीम शिव पुराण से लिए गए महिषासुर वध प्रसंग से ली गई।
असुर राज महिषासुर देवताओं के राजा इंद्र से अपने पिता के वध का बदला लेने का प्रण करता है। अपनी अपार मायावी शक्तियों से वो इंद्र और अन्य देवताओं को स्वर्ग से खदेड़ देता है। यहाँ तक कि वो इंद्रा की पत्नी शची को बंदी बना लेता है। महिषासुर और अन्य किरदार मनमोहक नृत्य करते हैं और एक-एक कर देवताओं को पराजित करता जाता है। वो अलग-अलग रूप बदलते रहता है। इसके बाद ब्रम्हा, विष्णु और महेश द्वारा महिषासुर को ख़त्म करने के लिए नारी शक्ति "महामाया" की रचना की जाती है और अंततः महामाया महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा करती हैं। इस लोकप्रिय पौराणिक प्रसंग में महामाया द्वारा राक्षस महिषासुर के वध की कहानी को बेहद द्रुत और रोमांचक ढंग से मंच पर प्रस्तुत किया गया। साथ ही कलाकारों ने नृत्य के दौरान ढोल, नगाड़ा, ढाल, ताशा, शहनाई और इलेक्ट्रॉनिक वाद्य का इस्तेमाल किया। आधुनिक आई ई एस यूनिवर्सिटी के स्नातक-स्नातकोत्तर 700 विद्यार्थी और नवोदय के 450 रिहायशी स्कूली छात्रों ने इस पारम्परिक को ख़ूब पसन्द किया। |
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