प्राची श्रीवास्तव (उन्नाव) |
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प्रकृति है शोभा ,का आगार,
भरा जिसमें ,सौन्दर्य अपार,
नेत्रों को ,देता है विश्राम,
पथिक वो हो, जो कोई क्लांत,।।1।।प्रकृति है शोभा...............
वनों में बिखरी हरियाली,
सुगंधित कुसुम कली प्यारी,
प्रवाहित मंद,सुगंधित वात,
हरे पथिकों का हर, संताप,।।2।।
प्रकृति है शोभा.........
प्रकृति है ईश्वर का वरदान,
इसी से जीव जगत के प्राण,
प्रकृति का करें, सभी सम्मान,
न काटें हरे वृक्ष, उद्यान।।3।।
प्रकृति है शोभा.................
प्रदूषित पर्यावरण, है आज,
किया हम सबने, ही यह काज,
बढ़ाया है वसुधा, का ताप,
दिया है प्रकृति,को संताप।।4।।
प्रकृति है शोभा...............
समय है अब भी, थोड़ा शेष,
जाग जाए यदि, हर एक देश,
तो निश्चित रुक,जाए यह नाश,
नहीं तो, होगा महाविनाश।।5।।
प्रकृति है शोभा...........
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