मशीनीकरण पर निर्भरता, पर्यावरण संकट की आहट
      17 April 2023

प्राची श्रीवास्तव उन्नाव
स्वैच्छिक दुनिया। वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में जहां एक ओर तकनीकी क्षेत्र में हम नवीन शोध व आविष्कार करके मानव के समय व श्रम की बचत हेतु अनेकानेक मशीनी उपकरणों का व्यापक मात्रा में विस्तार कर रहे हैं। जिससे न्यूनतम समय में अधिकतम कार्य सम्पन्न हो जाता है।यह आधुनिक व्यस्ततापूर्ण जीवन में आवश्यक व अनिवार्य भी किन्तु यह वहीं तक उचित है।

जब आवश्कता पर ही हम इनका उपयोग करें, न कि इन पर निर्भर हो जाएं। जिससे अनायास ही आलस्य,प्रमाद के चलते शरीर को जंग लगाने से बचाया जा सके। क्योंकि शारीरिक श्रम के अभाव में ही रोगों का आक्रमण सहजता से होता है। वहीं शारीरिक श्रम , योग, व्यायाम को दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बना लेने से शरीर, व मन दोनों ही स्वस्थ रहते हैं। अन्यथा विचार करें, कि क्या कारण है, कि आज मेडिकल क्षेत्र में नवीन, शोध व अनेकानेक चिकित्सकीय सुविधाओं के बावजूद भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का भी दिन प्रतिदिन विस्तार हो रहा है।
यूं तो आज के प्रदूषित वातावरण,जल, वायु, धूल, धुआं आदि के कारण तो स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां उत्पन्न हो ही रही हैं। किन्तु इन बिगड़ते वातावरण दूषित पर्यावरण का एक प्रमुख कारण हमारा मशीनीकरण पर निर्भर हो जाना भी नहीं है क्या? क्या हम सुख सुविधाओं के लिए आधुनिक उपकरणों का आवश्यकता से अधिक उपयोग कर पर्यावरण प्रदूषण विस्तार में एक अहम भूमिका नहीं निभा रहे हैं? अवश्य इसका कारण कहीं न कहीं हमारा स्वार्थपूरित संकीर्ण दृष्टिकोण है। जो कि देश,समाज, परिवेश पर्यावरण के हित को नजरंदाज कर सुखभोग के लिए तनिक भी समझौता न करता। फिर वो पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग जैसी भयावह स्थिति कितना भी विकराल रूप धारण कर ले। किन्तु आधुनिकता में संलिप्त समाज चेतनाशून्य सा होता जा रहा है। जिसके कारण भविष्य में व्यापक संकट की आहट के संकेत भूमण्डल के किसी न किसी ओर छोर से अब प्रत्यक्ष प्रकट हो रहे हैं। चाहे वो कोरोना के रुप में वायरस हो,या आए दिन भूकम्प के झटके हों, अथवा तो ज्वालामुखी का उदगार हो, या फिर 2013 केदारनाथ त्रासदी का वीभत्स दृश्य हो , साथ ही साथ हाल में बद्रीनाथ धाम क्षेत्र में घरों में आने वाली गहन दरारें हो ,जिन्होंने लोगों को उनके पैतृक घरों को उन्हें त्यागने पर विवश कर दिया है।
आखिर यह सिलसिला कब तक चलेगा, अथवा तो थमेगा कुछ भी कहना कठिन होगा । क्योंकि ये परिवर्तन तभी संभव है, जब समाज पर्यावरण संरक्षण हेतु जागरूक होगा। अतएव वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, व आगामी संकट को टालने हेतु,। हमें कृत्रिमता का सीमित उपयोग कर प्राकृतिकता की ओर कदम बढ़ाना होगा। प्रकृति पर अब तक जो निर्ममता से प्रहार किए गए है,उनके घावों को भरना होगा।जो कि पर्यावरण संरक्षण से ही संभव होगा ।इस तथ्य को हमारा समाज जितना शीघ्र समझ व स्वीकार ले, तो निश्चित ही आगामी संकट को टाला जा सकता है।।
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