मुजम्मिल |
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स्वैच्छिक दुनिया। भारत उत्थान न्यास, महिला समिति द्वारा मातृदिवस के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय वर्चुअल संगोष्ठी: आधुनिक परिप्रेक्ष्य में नारी का स्वरूप गूगल मीट पर आयोजित की गयी। कानपुर आकाशवाणी की उद्घोषिका रंजना यादव के संचालन में आयोजित संगोष्ठी के संयोजक व न्यास के केन्द्रीय अध्यक्ष सुजीत कुंतल ने अतिथि के रूप में उपस्थित समस्त मातृशक्ति को प्रणाम करते हुए उनका स्वागत किया। मुख्य वक्ता डॉ. चित्रा तोमर ने कहा कि यही सत्य है कि महिलाएं अनेक रूपों मे सशक्त है यदि वे स्वम पर दया खाना छोड़ दें क्योंकि सदियों की विरासत ने हमें यही सिखाया है अपने स्वाभिमान एवं दृण इच्छा शक्ति को आधार बनाकर बधाओं कों नष्ट करने का सामर्थ्य है नारी मे और एक माँ क़े रूप मे तो वह जीवनदायिनी है अतः सकारात्मक सोच रखना आवश्यकत है। मुख्य अतिथि डॉ. शशि अग्रवाल ने आधुनिक परिप्रेक्ष्य में महिलाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सम्पूर्ण विश्व आज महिलाओं का नेतृत्व स्वीकार कर उनका अनुसरण कर रहा है। इसलिए अब दुनिया की आधी आबादी के रूप में हम सभी महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। आबूधाबी से विशिष्ट अतिथि ललिता मिश्रा ने अपनी कविता, भविष्य बाहें पसारे करता उसका इंतजार। युग निर्माता वो जननी, लक्ष्य भेदने को तैयार। इतिहास रचाकर करती है वो अपना सोलह श्रृंगार। आज की नारी है जो, सबल, सचेत, सृजनकार सुनाई। अमेरिका से रेखा भाटिया ने कहा कि मानसिक सोच में बदलाव ज़रूरी समय बीतने के साथ वर्तमान आधुनिक और भौतिकवादी काल में नारी का स्वरुप बदला है। उच्च शिक्षा ग्रहण कर नारी हर क्षेत्र में अग्रणी है। समाज, देश और विश्व के सामाजिक और आर्थिक विकास में अपना विशिष्ठ योगदान दे रही है। घर, बाहर कड़ी मेहनत से, लगन से, निष्ठा से सभी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वाह कर नारी ने संतुलन और सांमजस्य बनाने की भरपूर कोशिश की है। स्त्रियों की सामाजिक दशा में बदलाव ज़रूर हुआ है लेकिन उपभोक्तावादी इस आधुनिक काल में नारी के सशक्तिकरण का आकलन केवल आर्थिक और भौतिक दृष्टी से किया जा रहा है, नारी को मात्र प्रदर्शन और भोग की वस्तु की तरह पेश किया जाता है। यह सुधार केवल सतही स्तर पर है जैसे रहन-सहन-पहनावा ,नौकरी इत्यादि तक ही सिमित होकर रह गया है। आधुनिकता के नाम पर थोपी गई संस्कृति- संस्कार और पहनावे में स्वतंत्रता को शक्तिकरण का मापक बनाकर विभिन्न प्रचार माध्यमों से स्त्रियों के शरीर को वस्तु की तरह नुमाइश कर स्त्री की गरिमा पर गंभीर और भयंकर कुठाराघात होने लगा है। इस काल में नर-नारी के एकदूसरे के पूरक भाव की जगह विरोधी भाव को अधिक उभारा गया। आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल कर लेने के बाद भी स्त्रियों के विरुद्ध अपराध, यौन हिंसा, घरेलु हिंसा,अत्याचार,सामाजिक, मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न और शोषण में वृद्धि ही हुई है। बलात्कार की घटनाएँ भारत ही नहीं वरन अमेरिका में भी ज्यादा घटती हैं। नारी स्वरुप का सशक्तिकरण सम्पूर्ण रूप से अभी भी मात्र एक छलावा है, जिसमें नारी स्वयं भी छली जा रही है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में सही मायनों में नारी को लैंगिक समानता, विचारों की समानता, समान अवसर और अधिकार मिले हैं , एक भ्रम है। लेकिन यह सोचकर संतोष होता है कि पितृसत्तात्मक सोच से नारी मुक्त होना चाहती है और निरंतर अग्रसर है। लेकिन सशक्तिकरण वैचारिक स्तर पर होना चाहिए, लैंगिक समानता, समान अधिकार और समान अवसर मिलने चाहिए जिसके लिए आवश्यक है नारी के प्रति सम्मान, संवेदनशील व्यवहार की भावना बढ़ाने के साथ ही सहिष्णुता उनकी सुरक्षा, जीवनशैली चुनने की उसे स्वतंत्रता होनी चाहिए। जिसके लिए सामाजिक और मानसिक सोच में बदलाव लाना बेहद ज़रूरी है। हिसार, हरियाणा की विशिष्ट वक्ता डॉ. गीतू भुटानी ने कहा कि कितनी बड़ी शक्ति आज हमारे हाथ में है। जिसे हमने पहचाना ही नहीं है। वी आर होम मेकर, हम जेनरेशन मेकर। बाहर से आने वाला आपको नहीं जीत सकता, जो आपके अंदर बैठा है, आपका स्वावलंबन, आत्मविश्वास। वही सब कुछ बदल सकता है। महिलाओं को अपने भीतर जीतना है, उन्हें बाहरी ताकत की ज़रूरत नहीं। हरियाणा से नेहा धवन और दुबई से निशा गिरि द्वारा वक्तव्य और कविता प्रस्तुत की ग्रीन। लखनऊ से डॉ. आनंदेश्वरी अवस्थी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा किभारतीय नारी को शक्ति का पुंज बताया उन्होंने कहा कि सहनशीलता और सृजनात्मक गुण नारी की अदम्य शक्तियां हैं। बनारस की प्रो. चम्पा कुमारी सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया। यहां डॉ. के सुवर्णा, डॉ. अनीता निगम, डॉ. रोचना विश्वनोई, शशि सिंह आदि उपस्थित रहे। |
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