लेखक, प्राची श्रीवास्तव (उन्नाव) |
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आधुनिक वर्तमान परिदृश्य के नवप्रवर्तन काल में यदि दृष्टिपात करें, तो हम सहजता से यह स्वीकार कर सकते हैं।
कि २१वीं सदी उज्ज्वल भविष्य के सूत्र को साकार करती हुई, मातृशक्ति अपने श्रेष्ठ कृतित्व, व्यक्तित्व,साहस, व शौर्य से विश्व पटल पर अपना परचम लहरा रही है। न सिर्फ विश्वपटल पर अपितु हरित धरा से नीले नभ तक नवीन कीर्तिमान स्थापित कर रही है। आज नारी शक्ति जाग उठी है। वह अपने पैरों पर खड़ी हो स्वावलंबी जीवन पथ की राही बन गई है। हां, आज ही क्यों ? यदि युगों युगों के ऐतिहासिक पृष्ठ पलट कर देखें तो दृष्टिगत होता है, कि नारी शक्ति ने प्रत्येक युग में अनेकों अविस्मरणीय, अद्भुत आश्चर्यजनक कार्यों को अंजाम दिया है।
हां यह कार्यक्षेत्र फिर चाहें युद्ध,ज्ञान, कला अथवा विज्ञान या अध्यात्म किसी का भी रहा हो। प्रत्येक क्षेत्र में एक मिशाल कायम की है, हमारी मातृशक्ति ने। सीमित साधनों में असीमित कार्यों को अंजाम दे, पंखों से नहीं अपितु हौसलों से उड़ान भरी है।
एक स्त्री जिसको आदिशक्ति का साक्षात स्वरूप माना जाता है।उसका ही इतना तिरस्कार क्यों होता आ रहा है? नवरात्रि के दिनों में जिस कन्या को आदिशक्ति का स्वरुप मान पूजन किया जाता है। आखिर क्यों फिर उसी मातृशक्ति पर अनेकों अत्याचार, तिरस्कार व अपमान कर उसे उपेक्षित किया जाता है। आखिर हम
होमोसेपियंस कहे जाने वाले बुद्धिजीवी कब तक मूकदर्शक बन ये अनाचार देखते रहेंगे।आज यह प्रश्न आधुनिकता के रंग से सराबोर, भौतिकता से परिपूर्ण किन्तु रूढ़िवादी विचारों की जंजीर से जकड़े, अध्यात्म शून्य समाज से है।
कि आखिर ये सिलसिला कब तक यूं हीं चलता रहेगा? कब तक हम जगजननी के स्वरूप का तिरस्कार करेंगे? कब तक अज्ञानता की बेड़ियों में जकड़े रहेंगे?
आखिर इन प्रश्नों के उत्तर की कब तक प्रतीक्षा करनी होगी? ये सब अनिश्चित कब निश्चित होगा ?
२१वीं सदी के नवभारत में इस पुरातन कुत्सित विचारधारा के चंगुल से आखिर हम क्यों ,नहीं मुक्त हो पा रहे हैं। क्यों हम नारी के वास्तविक स्वरूप से अपरिचित से हैं?
स्नेह, ममत्व, सहयोग, सहकार, सभ्यता, संस्कार, त्याग, समर्पण जैसे अनेकानेक गुणों से युक्त, माता, बहन, पुत्री, भार्या जैसी अनेकनेक भूमिकाओं का निर्वहन करने वाली ममता का शोषण क्यों?
आज समाज धृतराष्ट्र बन कितनी द्रौपदी का चीर हरण होते देख मौन धारण करे रहता, और निर्दोष नारी के पवित्र व्यक्तित्व, चरित्र को भी दूषित कर रहा है।
वर्तमान समय हमें जागरुक हो, पुरातन रूढ़िवादी, मान्यताओं को न तो पूर्णतः त्यागने की अथवा तो अपनाने की आवश्यकता है, अपितु हमें खुले मन मस्तिष्क व निष्पक्ष सोच से उचित व अनुचित के अन्तर को समझ किसी भी निर्णय पर पहुंचना होगा ।
तभी भारत मां के भाल का मुकुटमणि दैदीप्यमान हो उठेगा, जिसकी कान्ति से न सिर्फ भारतवर्ष अपितु इस भूमण्डल का प्रत्येक कण कण चमक उठेगा।
जिससे समाज की समृद्धि व प्रगति का पथ प्रशस्त होगा । |
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