जीवन, साथी और कानून
      07 June 2023

डॉ सुषमा सेंगर
जीवन केवल मनुष्य का ही नहीं होता जीव-जंतु वृक्ष-वनस्पतियों का भी होता है ! बाकी सभी की सीमित आवश्यकताएं हैं , जो अनादिकाल से चली आ रही हैं , भोजन-पानी, नींद और नित्यक्रिया व वंश वृद्धि !
परन्तु मानव कभी संतुष्ट ही नहीं होता , उसे जीने के लिए हर सुख सुविधा चाहिए | एक सम्पूर्ण सुख-सुविधा संपन्न व्यक्ति भी सुखी नहीं होता क्योंकि जैसे ही कोई नया सुविधा-साधन दिखाई देता है उसकी तृष्णा बढ़ जाती है की ये मेरे पास भी होना चाहिए | मानव अपने जीवन को सुविधा-संपन्न बनाने के लिए न्याय-अन्याय ,यश-अपयश,हानि-लाभ का भी विचार नहीं करता |लालसा ही पाप को जन्म देती है , इसी लिए पाप का बाप लालच कहा गया है |
*साथी* जीवन जीने के लिए साथी का होना अति आवश्यक है |साथी कैसा! जो जीवन के हर मोड़ पर साथ निभाए |कृष्ण और अर्जुन की तरह , कर्ण और दुर्योधन की तरह ,दशरथ और कैकेई की तरह, अत्रि और अनसुइया की तरह ,ताड़का और सुबाहु की तरह,कबीर और लोई की तरह , बापू और बा की तरह ,पाण्डु और माद्री की तरह |एक पुरुष या महिला दोनों ही ये चाहते हैं कि उसका साथी उसके आलावा पूरी दुनिया को निरर्थक समझे |हर पति चाहता है कि वो बाहर से आये तो उसका साथी मुस्कराते हुए स्वागत करे और उसकी हर सुख सुविधा के लिए हर समय प्रस्तुत रहे और उसी पर समर्पित रहे| हर पत्नी ये चाहती है कि उसका साथी उससे कोई बात न छुपाये उसकी हर सुख सुविधा का ध्यान रखे और उसके मनोभाव को बिना कहे ही जान ले |दोनों ही एक दुसरे से ये आकांक्षा रखते हैं कि एक दूसरे के माता-पिता ,परिवार व मित्रों का सम्मान रखेंगे |जहाँ पर ऐसे जीवनसाथी होते हैं वहां पर जीवन सुखमय होता है | पर ऐसे जीवन-साथी कम ही पाए जाते हैं |
*कानून*
कोई भी कानून इस लिए बनाया जाता है कि समाज में अराजकता न फैले |पुराने समय में बहु पत्नी प्रथा थी और द्रौपदी विवाह से साबित होता है कि बहु पति प्रथा थी !
हमारे धर्म ग्रंथों में पांच ऋण बताये गए हैं , जिसमे से एक ऋण पितृ ऋण है और इस ऋण को उतारने के लिए संतानोतपत्ति आवश्यक है | संतानोत्पत्ति के लिए विषम लिंगी विवाह आवश्यक है इसलिए जब से मानव ने जीवन जीना सीखा,विषम लिंगी के प्रति आकर्षण रहा |और साथ में एक अघोषित कानून ये भी बन गया कि पुरुष बाहर का काम करेंगे और महिला घर का कार्य करेंगी |

समय बीतता गया और महिला के समर्पित रूप से घर सम्हालने को पुरुष कमतर आंकने लगा और उस पर स्वामित्व जताने लगा |बाहर से आने के बाद वो जीवन साथी के बजाय शासक जैसा व्यवहार करने लगा और कुछ तो क्रूरतम व्यवहार करने लगे |परिणाम स्वरूप स्त्री ने विद्रोह किया और वो भी स्वावलंबन की दिशा में आगे बढ़ी |आज के समय में विज्ञानं और समाज ने चाहे जितनी प्रगति कर ली हो पर आज भी महिला का पुरुषों की तरह चौराहे पर हंसकर बात करना या. नुककड़ की चाय-पान की दुकान पर जाना चरित्र से जोड़ कर देखा जाता है | विपरीत लिंगी के इस तरह के व्यवहारों से प्रेरणा लेकर कुछ सम लिंगी भी जीवन-साथी की तरह रहने लगे |कहते हैं कि हर स्त्री में थोड़ा सा पुरुषत्व होता है और हर पुरुष में थोड़ा सा स्त्रीत्व | जिस किसी स्त्री में पुरुषत्व का गुण थोड़ा ज्यादा हो जाता है ,वो समाज की बनाई हुई जीवन- धारा से आगे निकल जाती है और वो किसी पुरुष को न पसंद करके किसी स्त्री पर आकर्षित होती है |जिस पुरुष में स्त्रीत्व का गुण ज्यादा होता है वो पुरुष पर ही आकर्षित होता है ,जिसे सम लैंगिकता का नाम दिया गया |
भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान 1860-62 में आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध घोषित किया गया था. साल 2001 में पहली बार एक गैरसरकारी संस्था नाज फाउंडेशन ने धारा 377 के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि समलैंगिक वयस्कों के बीच यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाये|
परिणाम स्वरूप समलैंगिक कानून को मान्यता दे दी गयी |
मेरे विचार से मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे अपने ढंग से जीने का पूरा-पूरा अधिकार है |राजनीति करने के लिए कोई भी कानून बना दिया जाये परन्तु सृष्टि की संरचना को सुचारु रूप से चलने के लिए और समाज की एकरूपता को बनाये रखने के लिए विपरीत लिंगी जीवन-साथी ही उचित है ,परन्तु आत्म संतुष्टि के लिए जो जिस मिजाज का है उसे अपने अनुरूप जीवन-साथी के ही साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए |
बाकी कानून कितने भी बन जाएँ हमारा समाज आज भी वहीँ खड़ा है |राम ने समाज के लोकोपवाद से बचने के लिए सीता का परित्याग किया ,परन्तु आज भी स्त्री चाहे जितनी अग्नि परीक्षा दे ले ,लांछन लगाने वाले भरोसा नहीं करेंगे |और पुरुष चाहे जितना समर्पित रहे दो दिन किसी के घर रह आये तो उसके साथ बदनामी जोड़ दी जाएगी |इसी तरह कितने भी कानून बन गए हो थर्ड जेंडर को समाज में आज भी सम्मानित स्थान नहीं मिल पाया है और समलैंगिकता को भी नहीं मिल पायेगा |इतनी प्रगति के बाद भी समाज वहीँ खड़ा है |
Twitter