मुजम्मिल |
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कानपुर 8 जुलाई उत्तर भारत का 163 वर्ष प्राचीन दक्षिण भारतीय महाराज प्रयाग नारायण मंदिर शिवाला बैकुंठ मंदिर के मंडप में परंपरागत श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ हुआ ।जगतगुरु राघवाचार्य जी महाराज अयोध्या के अति प्रिय शिष्य आचार्य योगेश जी महाराज एवं व्यासपीठ का पूजन मुकुल विजय नारायण तिवारी प्रबंधक अभिनव नारायण तिवारी ने पंडित गोपाल शास्त्री के निर्देशन ने सपरिवार संपन्न किया। कथा प्रारंभ करते हुए आचार्य योगेश महाराज ने कहा कि 84 लाख योनियों में से सिर्फ मनुष्य के पास विवेक है विवेक का उपयोग करते हुए श्रद्धा भाव के साथ भगवान के चरणों में समर्पण करना ही भक्ति है उन्होंने भूत जी का प्रसंग बताते हुए कहा कि स्वर्ग के अमृत और श्रीमद् भागवत कथा अमृत में अंतर है स्वर्ग अमृत पुण्य आत्माओं को प्राप्त होता है और पुण्य के समाप्त हो जाने पर पुना लेना पड़ता है और यह अंत हीन क्रम चलता रहता है परंतु श्रीमद् भागवत कथा वह अमृत है जो कोई भेदभाव नहीं करता है श्रद्धा भाव से सुनने वाला प्रत्येक व्यक्ति का कल्याण करता है भगवान भक्त आवागमन से मुक्त हो जाता है पूर्ण समर्पण से पूरे मनोयोग से कथा का श्रवण ही फलदायक होता है आचार्य महाराज द्वारा सुनाए गए भावपूर्ण भजन भगवान तेरी मैया उस पर पार लगा देना अब तक तो निभाया है आगे भी निभा देना को सुनकर उपस्थित श्रोताओं ने खूब आनंदित हुए उन्होंने नारद जी का उधार देते हुए कहा की महिलाओं के समूह बीच किसी पुरुष को नहीं जाना चाहिए ज्ञान और वैराग्य के होते हुए भी जिनके हृदय में भक्ति नहीं है उनका कल्याण नहीं होता वस्तुतः वेदो उपनिषदों से ही निकली श्रीमद् भागवत कथा अमृत है यह फल की भांति है इसका जो रसपान करेगा और रस पान वही करेगा जो रसिक है जिसके जन्म जन्मांतरओ के पुण्य का उदय होता है तभी कथा अमृत श्रवण करने का अवसर मिलता है कथा पर आचार्य महाराज ने एक और महत्व की बात कही व्यक्ति को अपने बच्चों परिवार के साथ पुत्र और पुत्रियों के साथ यह कथा श्रवण करनी चाहिए तभी संतानों में संस्कारी बनाने की जिम्मेदारी का निर्वाह कर सकेंगे उन्होंने आत्मदेव ब्राह्मण और उनकी कलह प्रिय पत्नी, का विधिवत उल्लेख किया संतान हीन ब्राह्मणों को संतो ने अपनी पत्नी को खिलाने के लिए एक फल दिया परंतु अंतत पत्नी ने फल नहीं खाया पड़ोसन को दे दिया पड़ोसन ने गाय को खिला दिया गाय से पुत्र हुआ जिसके कान गाय के सामान थे उसका नाम गोकर्ण रखा गया दूसरे पुत्र का नाम धुंधकारी रखा गया गोकर्ण विशुद्ध ब्राह्मण और धुंध कारी दुराचारी कुमार्गी हुआ जिससे दुखी होकर आत्मदेव वन चले गए गोकर्ण भी घर छोड़ कर जा चुके थे इधर धुंधकारी मैं दुर्गुण बढ़ते गए वह वेश्या गामी हो गया वेश्याओं ने असत के प्रतीक धुंधकारी को मार डाला घर की सारी संपत्ति उठा ले गई कुछ समय बाद गोकर्ण घर लौटे तो धुंधकारी प्रेत रूप में प्रकट हुआ सत्य के प्रतीक गोकर्ण ने संतो प्रार्थना करके धुंधकारी कल्याण किया कहने का आशय की जैसे कर्म व्यक्ति करता है उसको उन्हीं कर्मों के अनुसार फल भोगना पड़ता है आचार्य प्रवर ने भगवान की उपासना करने वाले तीन प्रकार के होते हैं सानी सनमार्ग से भक्त भक्ति के माध्यम से तथा तपस्वी सबसे भगवान की प्राप्ति करता है तीनों का लक्ष्य एक ही होता है भगवान को प्राप्त करना है भगवान प्राप्ति के लिए सबसे पहले व्यक्ति स्वयं को जाने खानपान आहार विचार शुद्ध करके भगवान के चरणों तक पहुंचा जा सकता है श्रीमद् भागवत कथा में प्रमुख रूप से माधवी सिंगर श्रीमती सची मिश्रा संजय सिंह एडवोकेट गीता वाजपेई पवन तिवारी एडवोकेट डॉक्टर अमित द्विवेदी मनहरण अवस्थी राघव तिवारी तथा उमंग अग्रवाल उपस्थित रहे। |
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