बिंदु पांडे |
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अहा खट्टे मीठे चौसा, दशहरी, सफेदा लगड़ा, पिलपिलुवा, गद्दर, चुसेवाला, चाकू से काट कर खाने वाला हरियर, पियर, कोयली पाद , का का कही कहबे सांच तो मनिहो झूठी बादर घिरे झमाझम लप्प लप्प बिजुरी चमके पर टपका के खावैया काहे बाज आवे पिले परे आमन की टोकरियाँ पर हाथ डारि डारि कौनो के हाथ दुई तो कौनों के हाथ तीन तीन उधेले परे शुगर कहि रहे 350 है पर बाज न आवे आम उड़ेले से, ये मार्मिक /धार्मिक दृश्य अपने ही शहर कम्पू के नौबस्ता क्षेत्र के राम जानकी वाटिका का है जहाँ डॉ सुषमा सेंगर के संयोजन, संचालन में काव्य मय आम्र गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ समालोचक साहित्यकार लक्ष्मी कान्त पाण्डेय जी ने की। सरस्वती वंदना से शुरू हुई एक एक कविता का सबने योगदान किया । श्रीमती सुनीता तिवारी जी ने पढ़ा खुद में लाखों कमी, फिर भी हम हैं सही, वयोवृद्ध कवियत्री मधु प्रधान जी, गीता चौहान जी, लुल्ल कानपुरी, उपेंद्र शुक्ल, इंस्टेंट कानपुरी ने झमाझम वाला गीत सुना कर झमाझम ही करवा दिया, श्री उदय मोहन मिश्र जी ने पढ़ा सरकार का लगा हैं ठप्पा , बाबूजी कहलाता, उन्नाव से आये अधिवक्ता श्री रवि शर्मा जी ने संबंधों की माटी पर प्रकाश डाला, श्री बंश गोपाल मिश्र जी ने सुंदर सुंदर दोहे सुनाए, श्री सुरेंद्र गुप्त सीकर जी ने पढ़ा हलवाई के हाथों की बनाई हम नही खाते, हम आम के मौसम में मिठाई नही खाते, श्री महेंद्र विश्वकर्मा जी ने कजरी सुना सबका मन मोहा, श्री गोविंद वर्मा जलज जी ने पढ़ा धूप लिखा था बैठ पेड़ की छांव में, शहर लिखा था बैठ के अपने गांव में श्री धीर पाल सिंह जी धीर ने आगे बात बढ़ाई बादलों की एक टोली गुनगुनाती विहँस के बोली, नगर के प्रसिद्ध आयुध फैक्ट्री कर्मी श्री सुरेश साहनी की ने कहा बरखा बूंदी बादर पानी भूल गए, बचपन की हर कहानी भूल गए, अक्षत व्योम जी ने पढ़ा वारिसों की नियामतें तो तमाम है, सुरेश गुप्त राजहंस जी ने घूमडि घूमडी बदरा भी झांक रहे, निधी मधेसिया जी ने अपना काव्य पाठ कर धारा को गति प्रदान की, हास्य व्यंग्य के दुर्गा बाजपेयी जी ने सबसे हट कर चूल्हे सिलेंडर के बीच के विवाद का सुंदर चित्रण किया, डॉ उदय नारायण उदय जी ने आम का फल बीच मे हो गया बदनाम, डॉ सुषमा सिंह ने अंत मे अपनी प्रसिद्ध कविता चाय से सबको चाय पिलवाई ,सबको धन्यवाद दिया गया । श्री सुरेश गुप्त राजहंस जी ने आभार प्रकट किया । |
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