आकांक्षा अवस्थी |
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कानपुर 27 दिसम्बर, 2023। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 148ए के अंतर्गत प्रावधान है जो कर-निर्धारण अधिकारी को यह अधिकार देता है कि आयकर रिटर्न, रिपोर्ट या विवरण प्रस्तुत न करने पर किसी व्यक्ति को नोटिस जारी करने की अनुमति देता है।
उपरोक्त प्रावधान वित्त अधिनियम, 2021 द्वारा लागू हुआ है। धारा 148ए के अंतर्गत यदि कर-निर्धारण अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति धारा 139 के अंतर्गत आयकर रिटर्न प्रस्तुत करने में विफल रहा है, अथवा धारा 92ई के अंतर्गत रिपोर्ट प्रस्तुत करने में विफल रहा है, धारा 285बीए के अंतर्गत वित्तीय लेनदेन का विवरण प्रस्तुत करने में विफल रहा है, तो वह नोटिस जारी कर सकता है। उपरोक्त नोटिस प्रधान आयुक्त या आयकर आयुक्त से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करने के उपरान्त ही जारी की जा सकती है। व्यक्ति को निर्दिष्ट अवधि के भीतर नोटिस का जवाब देना होगा, जो नोटिस प्राप्त होने की तिथि से 7 दिन से कम एवं 30 दिन से ज्यादा नहीं हो सकता है। उपरोक्त जानकारी आज कानपुर इनकम टैक्स बार एसोसिएशन की प्रत्यक्ष कर गोष्ठी में वक्ता वरिष्ठ चार्टर्ड अकाउंटेंट सी.ए. प्रशांत रस्तोगी ने प्रदान किया उन्होंने आगे बताया कि यदि कोई व्यक्ति निर्धारित समय के भीतर नोटिस का पालन करने में विफल रहता है, तो कर-निर्धारण अधिकारी, आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 271(1)(बी) के अंतर्गत रु.10,000/- जुर्माना लगा सकता है। आयकर रिटर्न जमा न करने पर कर-निर्धारण अधिकारी, आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 271एफ के अंतर्गत रु.5,000/- जुर्माना लगा सकता है। यदि व्यक्ति जुर्माना लगाने के बाद भी आयकर रिटर्न प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो कर-निर्धारण अधिकारी, आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 276सीसी के तहत अभियोजन कार्यवाही शुरू कर सकता है।उन्होंने यह भी बताया कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि धारा 148ए के अंतर्गत नोटिस को व्यक्ति द्वारा नोटिस प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर आयकर आयुक्त (अपील) के समक्ष चुनौती दी जा सकती है। व्यक्ति नोटिस की वैधता को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका भी दायर कर सकता है।गोष्ठी का सभापतित्व करते हुए प्रत्यक्ष-कर अध्ययन समिति के सभापति सी.ए. दीप कुमार मिश्र ने बताया कि आज की अध्ययन गोष्ठी का यह निष्कर्ष है कि आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए धारा 148ए के अंतर्गत नोटिस आयकर विभाग द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक उपकरण है। जिन व्यक्तियों को ऐसा नोटिस प्राप्त होता है, उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे किसी भी प्रकार की परेशानी से बचने के लिए निर्दिष्ट समय के भीतर जवाब दें अथवा अधिनियम के अंतर्गत दंड या अभियोजन की कार्यवाही का सामना करने के लिए तैयार रहें क्योंकि 148ए की बाद यही कार्य आपको 148 की नोटिस के बाद करना पड़ेगा।कार्यक्रम को संबोधित करते हुए एसोसिएशन के अध्यक्ष सी.ए. शरद शेखर श्रीवास्तव ने बताया कि जब 148ए की नोटिस में कर निर्धारण अधिकारी के अधिकार-क्षेत्र, जारी करने का समय, समय सीमा आदि अवश्य जांच लें क्योंकि नोटिस के जवाब के समय इन्हें चुनौती दी जा सकती है।गोष्ठी का संचालन महामंत्री सी.ए. राहुल चंद्रा तथा धन्यवाद ज्ञापन उपाध्यक्ष एड. नरपत जैन ने दिया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सर्वश्री शैलेन्द्र सचान, संतोष गुप्त, संजय अग्रवाल, संतोष मिश्र, प्रदीप द्विवेदी, महेश स्वरुप निगम, विनोद सचान, प्रवीन भार्गव, ओम प्रकाश वर्मा, गोपाल गुप्त, योगेन्द्र अरोड़ा, संजय शुक्ल, गणेश प्रसाद गुप्त, महेंद्र प्रसाद बाजपेई, अवनीश मिश्र, जय शंकर द्विवेदी आदि उपस्थित थे। |
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