आकांक्षा अवस्थी |
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प्रवासी साहित्य की तुलना भारतीय हिंदी मानक साहित्य की अपेक्षा प्रवासीजन की सीमाओं में करना उचित -प्रोफेसर विमलेश कांति वर्मा
श्रीरामचरितमानस एवं लोकवार्ता को आधार बनाकर प्रवासी देशों में हिंदी को पुनर्जीवित किया जा सकता है-प्रो.विमलेश कांति
गिरमिटिया गीतों में दिखाई पड़ती है भारत की तत्कालीन संस्कृति-प्रो.विमलेश कांति
आज हिंदी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवासी साहित्य के आलोचक, प्रसिद्ध भाषाविद् -प्रोफेसर विमलेश कांति वर्मा का 'भारतीय गिरमिटिया समाज (भाषा, साहित्य और संस्कृत) विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया।
प्रोफेसर विमलेश कांति वर्मा ने बताया कि गिरमिटिया भारतीयों को आज के प्रवासियों से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। भारतीय प्रवासियों में लगभग डेढ़ हजार वर्ष पूर्व गए रोमा जाति के लोग दूसरे यूरोपियन सत्ता के समय 'एग्रीमेंट' के अनुकूल सोने का लालच देकर विदेशी जमीन पर ले जाए जाने वाले लोग तथा तीसरे स्वाधीनता के पश्चात विदेश में जाकर जीवनयापन से जुड़े लोग आते हैं।इसमें तीसरा वर्ग अंग्रेजियत से प्रभावित है लेकिन विदेश में बसे अनेक भाषा -भाषियों के मध्य अंग्रेजी के बाद हिंदी ही संपर्क का साधन है। प्रोफेसर कांति ने प्रवासी साहित्य को एक अलग अनुशासन के रूप में रखने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्यकारों के लेखन में चूंकि भारत में प्रचलित, परनिष्ठित साहित्य के मानक के अनुरूप स्तर नहीं दिखाई पड़ता किंतु हमें प्रवासी साहित्य का मूल्यांकन प्रवासी जन की सीमाओं में ही करना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रवासी भारतीय कहने पर हम उन सभी विदेशियों को स्मरण करते हैं जिनके संस्कार कई पीढ़ियों के गुजरने के पश्चात भी आज भारतीय संस्कृति से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि गिरमिटिया जन भारत से अपनी मिट्टी और श्रीरामचरितमानस के गुटके लेकर गए थे जो उनका विदेश की धरती पर संबल बने। यदि हम विदेशों एवं गिरमिटिया देशों में हिंदी का विकास अथवा लुप्तप्राय हिंदी भाषा को पुनर्जीवित करना चाहते हैं तो हमें श्रीरामचरितमानस और लोक वार्ता को भाषिक आधार बनाना चाहिए। गिरमिटिया गीतों में हमें भारतीय संस्कृति दिखाई पड़ती है। इस अवसर पर नारी शक्ति मिशन के अंतर्गत नारी शक्ति मिशन की विश्वविद्यालय की निदेशक प्रो.मधुरिमा लाल तथा पद्मश्री विद्याविन्दु सिंह ने भी अपने विचार प्रकट किये। अतिथियों का स्वागत करते हुए विभागा ध्यक्ष प्रोफेसर रश्मि कुमार ने प्रवासी साहित्य के केंद्र में "संस्कृति" का महत्व स्थापित किया। बीज- वक्ता- प्रोफेसर योगेंद्रप्रताप सिंह ने "गिरमिटिया" का अर्थ, गिरमिटिया राष्ट्रों की समस्याओं, वहां की संस्कृति को स्पष्ट किया। इस अवसर पर विभागीय शिक्षकों के अतिरिक्त शोध छात्र उपस्थित रहे, साथ ही स्टार न्यूज़ की प्रोड्यूसर डॉक्टर सुनंदा की विशेष उपस्थिति रही जिन्होंने स्वयं प्रवासी साहित्य और साहित्यकारों पर शोध कार्य किया है। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर हिमांशु सेन तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर पवन अग्रवाल ने किया।
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