Rajiv Mishra |
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लखनऊ विश्वविधालय के दर्शनशास्त्र विभाग के द्वारा दिनांक 24/02//2024 को सैटरडे सेमिनार की विशेष श्रृंखला में विभागाध्यक्षा डॉ० रजनी श्रीवास्तव के संरक्षण में एक व्याख्यान का आयोजन किया गया । इस व्याख्यान में दर्शनशास्त्र विभाग की शोध छात्रा प्रिया गुप्ता ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया । उनके द्वारा प्रस्तुत व्याख्यान का विषय " The Sartrean look as a refutation of Solipsism : A Philosophical analysis" था। उनके द्वारा अपने व्याख्यान का प्रारम्भ स्वयं के अस्तित्व को लेकर डेकार्ट के द्वारा दिए गए एक कथन, " I think therefore I am " के द्वारा किया गया जो कि डेकार्ट के संदेह के सिद्धांत पर आधारित है ।
सार्त ने अस्तित्व संबंधी इस समस्या को अपनी पुस्तक ' being and nothingness' में वर्णन किया है और प्रमुख रूप से solipsism की समस्या स्वयं के अस्तित्व से जुड़ी हुई है और अन्य व्यक्तियों के अस्तित्व से खंडित होती प्रतीत होती है । उन्होंने अपने व्याख्यान में यह बताने प्रयास किया कि किस प्रकार से सार्त ने अपनी पुस्तक में इस समस्या के समाधान के लिए तीन प्रकार के अस्तित्व संबंधी उदाहरण देते हैं जिसमें being in itself, being for itself and being for others सामिल है। व्याख्यान के अंत में व्याख्याता ने यह भी बताने का प्रयास किया कि सार्त कहां तक इस समस्या के समाधान में सफल हुए। सेमिनार में दर्शनशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्षा डॉ० रजनी श्रीवास्तव के साथ- साथ विभाग के प्राचार्य प्रो. राकेश चंद्रा, डॉ० प्रशांत शुक्ला एवम डॉ. ममता सिंह उपस्थित रहे। सेमिनार में विभाग के शोध-छात्रों के साथ स्नातक एवं परास्नातक के साथ उपस्थित रहे। सेमिनार के कोऑर्डिनेटर विभाग के शोध छात्र विनीत कुमार एवं सेमिनार की रिपोर्ट लिखने का कार्य अनुज कुमार मिश्रा तथा शीतल शर्मा के द्वारा किया गया। सेमिनार के सफलता पूर्वक समापन में विभाग के अन्य शोध छात्रों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। |
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