एक सत्य
      23 December 2024

प्राची श्रीवास्तव (लेखक,कवि)

आखिर इस मिथ्या संसार में,
माया के भ्रम जाल में,
भटक भटक कर देखा ,
काफी कुछ खोजा ,बहुत ढूंढा किन्तु क्या पाया ,
कुछ भी तो हाथ न आया , जो आज मिला भी फिर कल छूट गया ,
आखिर इतने वर्षों में, कुछ भी तो ऐसा न मिला जो ठहर पाया,
जो आज कमाया भी, वो कल खर्च हो गया ,
जो आज जोड़ा, कल टूट गया ,कुछ छूट गया ,कुछ टूट गया ,
आखिर कुछ भी तो न पाया ,जो कभी स्थिर रह पाया ,
हां अगर कुछ पाया या ,कुछ संरक्षित रख पाया
तो वो केवल और केवल अनुभव ही है ,
जिसे कि जीवन के ,हर एक मोङ पर मैनें पाया,
और उसे ही सम्हाल के ,संजो के रखा ,
फिर जब कुछ भी, स्थिर ही नहीं इस मिथ्या संसार में,
तो क्या ,पाने की चाहत, क्या खोने का भय ,
निष्काम कर्म, कर्तव्य पालन ,निर्मल भक्ति, स्नेह विश्वास,
यही तो वो स्थायित्व है, जो अस्थिरता में भी स्थिर सा है,
यही तो वह सत्य है, जो परिवर्तनशील जगत में अपरिवर्तनीय सा है।
आखिर इस मिथ्या संसार में,.........................ll
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