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महावीर शर्मा, कच्छ, गुजरात |
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ढलते सूरज ने है सौंपी, जो दीपक को जिम्मेदारी।
निज बाती नेह जला कर के, वो पूरी करता है सारी।।
बाती का जब तक संबल है, है एक बूंद भी नेह शेष।
आलोक रहेगा राहों में, जब तक मेरा अस्तित्व शेष।।
कितना ही संघन तिमिर हो, यह शीश नहीं झुकने दूंगा।
अंधकार के साथ ज्योति का युद्ध नहीं रुकने दूंगा।।
जब तक जग में नैराश्य निशा, संघर्ष दीप का है जारी।
आशा की किरणें बिखरा कर, वह निभा रहा जिम्मेदारी।।
प्रण लिया यही है दीपक ने, दायित्व निभा कर जाऊंगा।
अपने बुझने के पहले भी, सौ दीप जला कर जाऊंगा।। |
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