तुलसी जन्मभूमि तथ्य एवं कथ्य : राष्ट्रीय संगोष्ठी
      01 November 2022

अशोक कुमार बाजपेई वरिष्ठ साहित्यकार
स्थान:- प्रेस क्लब अयोध्या
दिनांक:- 30 अगस्त 2022 (रविवार)
आयोजक: सरिता लोक सेवा संस्थान (रजिस्टर्ड)
निवेदक:- डॉक्टर कृष्ण मणि चतुर्वेदी (मैत्रेय)

गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म स्थान के बारे में विगत कुछ वर्षों से विद्वानों द्वारा अपने अपने तर्कों एवं कुछ दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर गोंडा एवं एटा जिले का भी नाम लिया जाने लगा है! हो सकता है भविष्य में अन्य स्थान भी सामने आए, परंतु तथ्यों एवं बचपन से सुने जा रहे हैं कथ्य के अनुसार मेरा दृढ़ मत है कि संत तुलसीदास जी का जन्म जनपद चित्रकूट में पावन यमुना नदी के दाहिने किनारे पर बसे ग्राम राजापुर में ही हुआ था! इसके कई प्रमाण हैं !

1- कई वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे महान विद्वान यशःशेष आचार्य विष्णुकांत शास्त्री जी ने कानपुर के तुलसी जयंती समारोह में एक शोध पूर्ण वक्तव्य देते हुए कहा था कि मैं गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म स्थान के बारे में जांच करवा कर इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि गोस्वामी तुलसीदास का जन्म वास्तव में चित्रकूट के राजापुर गांव में ही हुआ था ,एटा के सोरों या गोंडा में नहीं हुआ था! इसी जांच के आधार पर मैंने राजापुर में ही तुलसी स्मारक तथा तुलसी मंदिर बनवाने के लिए शासन से अनुरोध किया है! राज्यपाल के अनुरोध पर ही राजापुर में तुलसी स्मारक तथा तुलसीदास जी का भव्य मंदिर उत्तर प्रदेश सरकार ने बनवाया है!

2- उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष एवं छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर के पूर्व कुलपति डॉ के.वी. पांडे जी ने हिंदी भवन गंगापुर बिठूर में तुलसी जयंती के अवसर पर अपने शोध पूर्ण भाषण में गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म जनपद बांदा के यमुना नदी के दाहिने तट पर बसे ग्राम राजापुर में ही हुआ था, यह बताया था तथा छंद रामायण के रचयिता डॉक्टर महेश चंद्र शुक्ला की तुलना गोस्वामी तुलसीदास जी से करते हुए उन्हें आधुनिक तुलसी कहा था जिनका जन्म यमुना नदी के दाहिनी ओर ग्राम राजा के नौगांव में हुआ था!

3- राजापुर में तुलसीदास के तत्कालीन शिष्यों के दो परिवार रहते हैं, उनमें एक है तिवारी जी जिनके पास तुलसीदास जी के द्वारा हस्तलिखित रामचरितमानस की अयोध्या कांड की पांडुलिपि रक्खी है! श्री तिवारी जी ने श्री महेश चंद्र शुक्ला को बताया था कि उस पाण्डुलिपि की सुरक्षा के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ सम्पूर्णानंद जी ने एक बड़ी लोहे की तिजोरी उन्हें दी थी जो उनके पास उपलब्ध है जिसमें वह पांडुलिपि को सुरक्षित रखते हैं!

4- राजापुर में गोस्वामी तुलसीदास जी के दूसरे शिष्य चौबे जी के परिवारी जन रहते हैं उनके पास भी तुलसीदास जी की कुछ स्मृतियां सुरक्षित हैं! उन्होंने भी डॉक्टर महेश चंद्र शुक्ला को स्मृतियां दिखाई थी! उनके पास गोस्वामी तुलसीदास जी के लकड़ी की खड़ाऊं एवं गोस्वामी तुलसीदास जिस शालिगराम की पूजा करते थे जो सिंह रंग के है! भगवान शालिग्राम की मूर्ति है तथा यमुना नदी से निकली गोस्वामी तुलसीदास जी की एक पत्थर की प्राचीन प्रतिमा है इन दोनों ही लोगों द्वारा बताया गया था कि उनके पूर्वज गोस्वामी तुलसीदास जी के शिष्य थे, वे उनके अंत समय तक तुलसीदास जी के साथ ही काशी में रहे थे!

5- गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित रामचरितमानस के प्रथम संस्करण में वर्णित गोस्वामी तुलसीदास जी की जीवनी में स्पष्ट रूप से लिखा है कि संवत् 1554 कि श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन अभूत्त मूल नक्षत्र में बांदा जिले में राजापुर नामक एक ग्राम में आत्माराम दुबे नाम के प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार रहता था! जिनकी पत्नी का नाम हुलसी था ! इनके घर पुत्र रूप में गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ था जन्म लेते ही तुलसीदास रोए नहीं थे तथा उनके जन्म से ही दांत मौजूद थे इन्होंने जन्मते ही राम बोला था! बालक रामबोला की बुद्धि बड़ी प्रखर थी वह जो एक बार सुन लेते उन्हें याद हो जाता था वह अपने गुरु नरहर्यानंद जी के साथ अयोध्या और वहां से गुरू एवं शिष्य दोनों शूकर क्षेत्र (सोरों) पहुंचे जहां गुरु ने रामचरित सुनाया वहां से कुछ दिन बाद काशी चले आए इधर उनकी लोकवासना जागृत हो उठी तो अपने गुरु से आज्ञा लेकर अपनी जन्मभूमि राजापुर बांदा को लौट आए वहां जहां विधिपूर्वक अपने माता पिता का श्राद्ध कर्म किया और वही रह कर राम कथा सुनाने लगे संवत 1583 जेष्ठ शुक्ल 13 गुरुवार को भारद्वाज गोत्र की एक सुंदर कन्या से इनका विवाह हुआ (विवरण संलग्न है )

6- गीता प्रेस की स्थापना से पूर्व सन 1892 में वेंकटेश्वर प्रेस मुंबई में छपी तुलसीकृत रामायण तुलसीदास जी के जीवनी की प्रथम पृष्ठ की पहली चौपाई में उनके राजापुर बांदा का वर्णन है !
राजापुर यमुना के तीरा
तुलसी तहां बसे मत धीरा

7- "मात्रस्थान" पत्रिका, अगस्त 2016 के अंक जिसके संपादक श्री अनूप शुक्ला इतिहासकार है उसमें डॉक्टर अयोध्या प्रसाद पांडे के आलेख "तुलसी को हाट-घाट की माफी" में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि तत्कालीन दिल्ली के सम्राट अकबर महात्मा तुलसी से मिलने को लालायित हो उठे! सम्राट ने कभी आगरा से इलाहाबाद की यात्रा में तुलसी जी के दर्शन किये! कहा जाता है की सम्राट अकबर उनके दर्शनार्थ स्वयं राजापुर पधारे थे तथा महात्मा तुलसी का प्रसाद पाकर तृप्ति का अनुभव पर सम्राट बड़े प्रभावित हुए और राजापुर में 96 बीघा भूमि तथा हॉट घाट की माफी उनके भोग प्रसाद हेतु के लिए निमित्त कर दिया!
राजापुर साम्राज्य के प्रमुख जल मार्ग पर स्थित था! राजापुर के निकट कायस्थ बाड़ा (खटवारा) निवासी श्याम सुंदर कायस्थ सम्राट अकबर के कानूनगो थे, वह तुलसीदास के शिष्य थे! तुलसीदास की कीर्ति सम्राट तक पहुंची होगी !
सत्य प्रतिलिपियों से स्पष्ट है कि सम्राट ने तुलसीदास तथा उनके वंशजों को यह माफी साबान माह की 25 तारीख सन 3 ईलाई अर्थात 992 हिजरी या सन 1584 ईस्वी में दिया था !

8- मुगल साम्राज्य के छिन्न-भिन्न होने पर स्वतंत्र राज्य स्थापित होने पर नरेशों ने सम्राट अकबर के प्रदत्त आदेशों को ज्यों का त्यों रक्खा!

9- कुछ समय के लिए जब समस्या आइ तब राजापुर के लोगों की अपील पर जांच करने के पश्च्यात ले. गवर्नर के सेक्रेटरी आगरा से दिनांक 2 सितंबर 1846 का इलाहाबाद के कमिश्नर को लिखा कि आपने जो बांदा के मजिस्ट्रेट को आदेश दिया था कि वह राजापुर घाट पर अधिकार करके उसकी मासिक आय राजापुर के ब्राह्मण माफीदारों को दे दी जाए उसका गवर्नर गवर्नर महोदय अनुमोदन करते हैं! यानी गोस्वामी तुलसीदास के वंशजों को हाट घाट की माफी मिलती रही ।

10- सन 1847 ईसवी में विद्रोह की चिंगारी भड़क उठी जिसके प्रभाव से राजपुर भी अछूता न रह सका, विद्रोह शांत होने पर माफ़ीदार अंग्रेजों के कोप भाजन हुए और माफी/ आय का आधा भाग वंशजों को एवं आधा राजकोष में जमा होने लगा! इस पर माफीदार बृजलाल गंगादीन आदि ने आपत्ति की परन्तु उनका प्रार्थना पत्र 2 अप्रैल 1880 को अस्वीकृत कर दिया गया।
माफीदारों को अपनी सहायता का अन्य कोई मार्ग न देख घाट की आधी आय से संतोष करना पड़ा परन्तु यह स्थित अधिक समय तक न रह सकी। इधर माफीदारों में भी फूट पड़ चुकी थी इसके फलस्वरूप सरकार ने आय एवं उसके आधे भाग का ही प्रश्न समाप्त कर दिया और पिछले कई वर्षों की औसत निकाल कर ₹684 वार्षिक आय निर्धारित कर दी।
यह धन पहले तहसील मऊ जिला बांदा से मिलता था किंतु बाद में घाट का प्रबंधन डिस्ट्रिक्ट बोर्ड बांदा को दे दिया गया और अब तक उक्त धन माफीदारों को आज भी जिला परिषद से मिलता है। यद्यपि परिषद को घाट से हजारों रुपए का लाभ प्राप्त होता है।

राजापुर का मुख्य बाजार अब दूसरी जगह चला गया है यह है माफी का स्वरूप जो सम्राट अकबर द्वारा महात्मा तुलसीदास तथा उनके वंशजों को दिया गया था (आलेख संलग्न है) उपरोक्त तथ्यों के आधार पर मेरा मत है कि गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म स्थान को लेकर विवाद में न पड़ा जाए तथा सर्वमान्य राजापुर चित्रकूट बांदा को ही इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी के माध्यम से मान्यता दी जाए!
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