होलीकोत्स्व के उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी का आयोजन
      03 March 2023

बिंदु पांडे
स्वैच्छिक दुनिया। साहित्य संसार एवं समरस संस्थान साहित्य सृजन की अध्यक्ष डॉ.कमलेश शुक्ला कीर्ति ने दिनांक 2-3-23दिन बुधवार को होलीकोत्स्वसाहित्य संसार एवं समरस संस्थान साहित्य सृजन की अध्यक्ष डॉ.कमलेश शुक्ला कीर्ति ने दिनांक 2-3-23दिन बुधवार को होलीकोत्स्व के उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी का आयोजन एवं शानदार संचालन किया जिसमें कानपुर नगर एवं नगर से बाहर के भी कई कवयित्रियां एवं कवि सम्मिलित हुए।
किरण मिश्रा ने दोहों के द्वारा सरस्वती वन्दना कर गोष्ठी की शुरआत किया ।तत्पश्चात डॉ. सुषमा सिंह ने फाल्गुन आया झूम के उड़ने लगा गुलाल , गीता चौहान ने कई छंद, आशा निलय ने उत्तरा शर्मा ने ' मिलकर खेल रहे सब होली" ,सुनीता तिवारी ने "होली खेल रहे नंदलाला" ,आदित्य कटियार ने "होली के हुड़दंग में सब अपने रंग में",माधुरी द्विवेदी ने "दहकने लगे जब मन में पलाश" स्वैच्छिक दुनियां के संपादक राजीव मिश्रा ने अवधी भाषा में "तनिक आवा रे रंग डारी रे सब मिलकर धूम मचावा रे" ,सुनाकर अवधी पूर्वी सभी भाषाओं के शब्दों द्वारा गोष्ठी को रंगमय कर दिया। इसके बाद किरण मिश्रा ने "फागुन मा दिन लागत मधुरिम" , अशोक गुप्त अचानक ने "होली के दिन जो किसी को छुओगे" ,हर तरफ होली का हुड़दंग , विशिष्ट अतिथि डॉ .मधु श्रीवास्तव ने "भींगा अंग तो लजाय रही गोरिया" ,प्रीति श्रीवास्तव ने "देखिए अब क्या गुजरती है", मुख्य अतिथि उन्नाव के चंद्र भान चंद्र ने सब कहते हैं "बड़े अस्त व्यस्त नजर आते हो",अंत में डॉ.कमलेश शुक्ला कीर्ति ने "मोरी विनती सुनो सांवरिया ,मत डारो रंग चुनरिया" सुनाकर गोष्ठी को चरमोत्कर्ष पर पहुंचा दिया एवं अंत में अध्यक्षीय भाषण देकर सभी को ह्रदय से धन्यवाद ज्ञापित किया।

आयोजक
अध्यक्ष
डॉ.कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर। के उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी का आयोजन एवं शानदार संचालन किया ।
जिसमें कानपुर नगर एवं नगर से बाहर के भी कई कवयित्रियां एवं कवि सम्मिलित हुए।
किरण मिश्रा ने दोहों के द्वारा सरस्वती वन्दना कर गोष्ठी की शुरआत किया ।तत्पश्चात डॉ. सुषमा सिंह ने फाल्गुन आया झूम के उड़ने लगा गुलाल , गीता चौहान ने कई छंद, आशा निलय ने
उत्तरा शर्मा ने ' मिलकर खेल रहे सब होली" ,सुनीता तिवारी ने "होली खेल रहे नंदलाला" ,आदित्य कटियार ने "होली के हुड़दंग में सब अपने रंग में",माधुरी द्विवेदी ने "दहकने लगे जब मन में पलाश" स्वैच्छिक दुनियां के संपादक राजीव मिश्रा ने अवधी भाषा में "तनिक आवा रे रंग डारी रे सब मिलकर धूम मचावा रे" ,सुनाकर अवधी पूर्वी सभी भाषाओं के शब्दों द्वारा गोष्ठी को रंगमय कर दिया। इसके बाद किरण मिश्रा ने "फागुन मा दिन लागत मधुरिम" , अशोक गुप्त अचानक ने "होली के दिन जो किसी को छुओगे" ,हर तरफ होली का हुड़दंग , विशिष्ट अतिथि डॉ .मधु श्रीवास्तव ने "भींगा अंग तो लजाय रही गोरिया" ,प्रीति श्रीवास्तव ने "देखिए अब क्या गुजरती है", मुख्य अतिथि उन्नाव के चंद्र भान चंद्र ने सब कहते हैं "बड़े अस्त व्यस्त नजर आते हो",अंत में डॉ.कमलेश शुक्ला कीर्ति ने "मोरी विनती सुनो सांवरिया ,मत डारो रंग चुनरिया" सुनाकर गोष्ठी को चरमोत्कर्ष पर पहुंचा दिया एवं अंत में अध्यक्षीय भाषण देकर सभी को ह्रदय से धन्यवाद ज्ञापित किया।
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